- अमिताभ श्रीवास्तव

सैयारा की खासियत दो नये चेहरे हैं-हीरो अहान पांडे और हीरोइन अनीत पड्डा। हीरोइन सिर्फ ख़ूबसूरत ही नहीं है, उसका काम भी हीरो से बेहतर है। हीरो भी ठीक-ठाक ही है। कहानी में कुछ खास नयापन नहीं है। मोहित सूरी महेश भट्ट स्कूल के शागिर्द हैं। कोरियन फिल्म की कॉपी वाली बात छोड़ भी दें तो महेश भट्ट के बैनर तले बनी आशिकी और आशिकी 2 जिन्होंने देखी हो, वो मोहित सूरी की सैयारा की बुनियाद वहां देख सकेंगे। हां, नये दौर के हिसाब से पॉलिशिंग और पैकेजिंग के फेरबदल के साथ सैयारा आज के युवा दर्शकों को बहुत नयी लग रही है जिसके चलते युवा सिनेमाघरों में काफी तादाद में जा रहे हैं और फिल्म देखकर आंसू बहाते, पछाड़ें खाते लडक़े-लड़कियों की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर छाये हुए हैं जो फिल्म के लिए एक्सट्रा कौतूहल और पब्लिसिटी का काम कर रहे हैं।
दर्शकों का ऐसा पागलपन भी कोई नयी बात नहीं है। हिंदी फिल्मों के शुरुआती दौर से आज तक हीरो-हीरोइन, कहानी, रोना-धोना, रोमांस, दुख-दर्द, गीत-संगीत, फैशन, स्टाइल सब को लेकर दर्शकों की हर पीढ़ी में दीवानगी रही है। इसका मज़ाक बनाने वाले अपना दौर भूल रहे हैं। एक युवा प्रेम कहानी, नयी जोड़ी , बाग़ी-ग़ुस्सैल-बिगड़ैल हीरो या हीरोइन, परिवार-समाज-हालात-रीतिरिवाज, अमीरी-गरीबी, धर्म-जाति की दीवार के खलनायकत्व के खिलाफ, नायक-नायिका की बगावत या प्रेम त्रिकोण की परिस्थिति में तीसरे पक्ष का बलिदान/त्याग और फिर ज़्यादातर सुखद समापन का फार्मूला हमारे हिंदी सिनेमा में दिलीप कुमार-राज कपूर-देव आनंद के जमाने से लेकर आज तक आम तौर पर कामयाब होता चला आ रहा है। तमाम नये चेहरे प्रेम कहानियों के रास्ते ही हिंदी सिनेमा की दुनिया में दाखिल हुए और धूम-धड़ाके से शुरुआत की।
सैयारा की कामयाबी उसी सिलसिले की लेटेस्ट कड़ी मानी जानी चाहिए। अहान पांडे और अनीत पड्डा की शुरुआत तो धमाकेदार है, आगे की आगे देखी जाएगी। आशिकी वाले राहुल रॉय और आशिकी 2 वाले आदित्य राय कपूर का अपनी पहली सुपर सफलता के बाद का अंजाम सिनेमा पर नजर रखने वालों को मालूम ही है। लव स्टोरी की कामयाबी को भी न कुमार गौरव दोहरा पाये थे न विजयता पंडित। एक ऐसी लवस्टोरी , जहां हीरो रॉकस्टार-पॉपस्टार टाइप सिंगर है,लाखों लोग उसके दीवाने हैं, हीरोइन पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी में गाने भी लिखती है, का संगीत पक्ष मजबूत न होना सैयारा की बड़ी कमी है। मोहित सूरी को कम से कम आशिकी और आशिकी 2 के संगीत की मिसाल सामने रखकर सैयारा का म्यूजक़ि तैयार कराना चाहिए था। ढेर सारे गीतकार हैं, ढेर सारे संगीतकार हैं मगर ऐसा कोई गाना नहीं है जो फिल्म खत्म होने के बाद देर तक आपके साथ चले, जिसे आप गाहे-बगाहे बेखयाली में गुनगुनाते रहें। टाइटिल सॉंग महिला स्वर में ज्यादा असरदार है, फिल्म के बिल्कुल अंत में आता है। हीरोइन की अल्जाईमर की बीमारी को भी जिस तरह दिखाया गया है, वह हजम नहीं होता। आज की तारीख नहीं याद रहती, लेकिन पुराना प्रेमी सामने पड़ते ही अतीत याद आने लगता है। फिल्म चल तो खूब रही है। देखने का मन करे तो देख आएं।