राज का सियासी मुजरा

  • अवधेश बजाज कहिन

यह विशुद्ध रूप से उस शख्स जैसा मामला है, जो सप्ताह में सातों दिन अलग-अलग कमीज पहनता रहता है। जल्दी ही इसका राज पता चल गया। उसके पास तमीज की कुल सात कमीज ही हैं। हर कमीज पहनने के बाद वो उसे धोता नहीं है। बस रात को ऊपर का वह कपड़ा उतारा। उसकी बांह वाले दोनों बाजुओं पर थोड़ा-सा साबुन लगाया और केवल उतने हिस्से को धो दिया। कमीज तैयार है, अगले मौके पर पहनने के लिए। अपने भीतर समाए हुए तमाम चीकटदार मैल के बावजूद पसीने की दुर्गंध को छिपाने में सफल होकर।
यही  हिसाब है राज ठाकरे का। सत्ता की लगभग आए दिन वाली सप्तपदी में ‘दुल्हन एक रात की’ वाले फेर में वो खुद भी ऐसे ही होकर रह गए हैं। आए दिन एक नया चोला ओढ़ते हैं। वो भी उस हिसाब से कि राजनीतिक शुभ-लाभ की उस रोज वाली सेज पर किसके मुताबिक़ खुद का लुभावना श्रृंगार करना है। चुनांचे कभी वो हिंदुत्व के नाम की मांग भर लेते हैं तो कभी ‘मराठी मानुस’ वाला घुँघरू  पहन लेते हैं। फिर हर रात अपने नफ़ा-नुकसान का आंकलन कर उस दिन वाले लिबास को केवल बाजू से धो देते हैं। यह सोचकर कि वो कभी फिर काम आ जाएगा। केके तिवारी अब नहीं रहे। कांग्रेस के बेहद मुंहफट नेताओं में गिने जाते थे। ऐसे लोगों का जिक्र आमतौर पर मेरे शब्दकोष में नहीं रहता, लेकिन कभी-कभी निकृष्टतम की चर्चा करने के लिए उसी स्तर का उदाहरण देना भी अनिवार्य हो जाता है। उस समय एनटी रामराव जीवित थे। तिवारी ने एक पत्रिका से कहा था, ‘रामाराव प्रधानमंत्री बनने के लिए टोना-टोटका करते हैं। वो हर रात कान में बाली,  नाक में नथनी और शरीर पर साड़ी पहनकर सोते हैं, ताकि प्रधानमंत्री बन जाएं।’ तिवारी इस सूरत में याद आए कि उनके कहे कि सूरत ही नहीं, बल्कि सरापा  व्यक्तित्व में आज मुझे राज ठाकरे नजर आ रहे हैं। क्योंकि सत्ता-सुंदरी के साथ आने की खातिर खुद राज भी पूरी निर्लज्जता के साथ अपने राजनीतिक जनानांग के मूल स्वरूप से ठीक विपरीत जाकर नित-नए वेश अपना लेते हैं। फिर रामराव की ऐसी तथाकथित रातों से बहुत आगे राज तो इसी टोटके में 24ङ्ग7 वाले हिसाब से रम चुके हैं।
राज के इस सियासी मुजरे में उद्धव ठाकरे भी उस तबलची हो कर रह गए हैं, जो कोठे पर रक्कासा की चाल के अनुरूप ही तबले की ताल को दिशा देता रहता है। उद्धव कभी कहते हैं कि वो हिंदी-भाषियों पर अत्याचार के खिलाफ हैं तो कभी दन्न से राज  का समर्थन भी कर देते हैं। हद है कि जो आदमी कभी महाराष्ट्र का  मुख्यमंत्री रहा हो, वो आज तुनकमिजाजी के नाम पर ‘मानसिक शीघ्रपतन’ के शिकार उस आदमी के आगे नतमस्तक है, जो अपने सियासी मजमे से आज तक महज एक विधायक और एक पार्षद की सफलता-भर हासिल कर सका है। कभी सोचिए कि इसी आदमी के चलते महाराष्ट्र आज किस हालत में पहुँच गया है। यह असहिष्णुता का चरम है कि जिन गुजराती, उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीयों को मराठी नहीं आते, वो इस राज्य में लतियाए जा रहे हैं और यह वैचारिक नपुंसकता का चरम है कि इसी भाषा के न जानने वाले वो सभी महफूज हैं, जो इसी राज्य के अल्पसंख्यक बाहुल्य वाले इलाके में रहते हैं। पूरी एकता और अपनी हिफाजत के लिए आक्रामकता के साथ।
राज ठाकरे इस आत्मरति के शिकार हैं कि वो महाराष्ट्र की राजनीति के बागवान हैं। क्योंकि इस राज्य में सियासी  हैसियत से बहुत कमजोर होने के बावजूद कांग्रेस ने राज को नाबदान के बराबर तवज्जो भी नहीं दी है। पार्टी ने साफ कह दिया कि राज्य में गठबंधन के लिए वह राज या उनकी पार्टी के कोई बात नहीं करेगी। कांग्रेस के पृथ्वीराज चाव्हाण तो साफ़ कहते हैं कि राज की सभाओं में भले ही भीड़ उमड़े, लेकिन उनकी पार्टी को वोट नहीं मिलते हैं। इधर शरद पवार की एनसीपी ने भी राज को साथ बिठाना तो दूर, उन्हें घास डालने लायक भी नहीं समझा है। राज की हरकतों से वाकिफ भाजपा भी  उनके लिए कई घरों के बाहर टंगी ‘ .. से सावधान’ की तख्ती जैसा आचरण ही करती है। लेकिन इस सबके बीच ताज्जुब होता है कि महाराष्ट्र के रहने वाले शुभचिंतक राज का प्रतिकार नहीं कर पाते। निश्चित ही यह आतंक के आगे चुप रहने का  मामला है। लेकिन खामोशी के बीच उस चीत्कार को उन्हें सुनना और समझना ही होगा कि भाषाई आधार पर राज की यह घातक राजनीति किस तरह उनके राज्य के लिए ‘पाप अधिकृत मुंबई’ जैसे हालात निर्मित करती जा रही है। आज महाराष्ट्र में रहने वाले हरेक गैर-मराठी के बीच वह ही माहौल है, जो अस्सी के दशक के अंतिम वर्षों में कश्मीर के गैर-मुस्लिमों के बीच था। फिर क्या हुआ? कश्मीर अनिश्चितता और अस्थिरता के दलदल में धंसता चला गया। महाराष्ट्र में भी राज का ‘सियासी अलगाववाद’ और ‘भाषाई आतंकवाद’ इस राज्य के लिए घनघोर अपशगुन का संकेत है। ‘मराठी मानुस’ के नाम पर इस अमानुष व्यवहार के खिलाफ असली मराठी मानुस को भी मुखर होना होगा। ताकि इस राज्य को मैल सनी कमीज से भी अधिक मैली मानसिकता के विषाणुओं से मुक्ति दिलाई जा सके।

Related Articles