पत्थरों के टुकड़ों से बनेगी रेत

रेत
  • हर साल प्रदेश में होती है 4 करोड़ घनमीटर रेत की खपत

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। रेत के लिए नदियों पर निर्भरता खत्म करने के मकसद से मप्र की पहली मैकेनिकल सेंड (एम-सेंड) पॉलिसी बनाई जाएगी। नई पॉलिसी में प्रस्तावित किया गया है कि मप्र में एम-सेंड का 10 करोड़ रुपए का प्लांट लगाने पर 40 प्रतिशत तक की सब्सिडी सरकार देगी। पॉलिसी में ओवर बर्डन निष्पादन कराने वाला मप्र पहला ऐसा राज्य होगा। ओवर बर्डन निष्पादन यानी किसी भी खनन के दौरान मिट्टी के साथ निकलने वाले पत्थरों के टुकड़े। नई पॉलिसी में इन पत्थरों को भी तोडकऱ रेत बनाने की मंजूरी दी जा रही है। अब तक खनन के बाद निकले पत्थर काम के नहीं होते थे। पत्थरों को तोडकऱ उसी तकनीकी दक्षता की रेत बनाने को एम-सेंड कहते हैं, जैसी नदियों से निकलती है।
फिलहाल तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, राजस्थान और केरल जैसे देश के 8 राज्यों में एम-सेंड पॉलिसी लागू है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा 2 करोड़ टन, तेलंगाना में 70 लाख टन और तमिलनाडु में 30 लाख टन, राजस्थान में 1.20 करोड़ टन एम-सैंड का सालाना उत्पादन हो रहा है। राजस्थान ने इसके लिए वर्ष 2024 में एम-सैंड पॉलिसी बनाई थी। इसके तहत रियायत देते हुए 3 साल के अनुभव व 3 करोड़ के टर्न ऑवर की बाध्यता समाप्त कर दिया गया है। सरकारी व वित पोषित निर्माण कार्यों में बजरी की मांग की आपूर्ति में 50 प्रतिशत एम-सैंड के उपयोग की अनिवार्यता तय है। केरल की पॉलिसी से सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि वहां नदियों से रेत का उत्खनन ना के बराबर बचा है। सभी स्टेक होल्डर्स से बैठकों की प्रक्रिया पूरी करने के बाद बनी मप्र एम-सेंड पॉलिसी अब आखिरी चरण में है। सूत्रों का कहना है कि शासन स्तर पर इस पॉलिसी को जल्द ही प्रदेश में लागू किया जा सकता है।
बड़ी खनिज खदानों के पत्थरों से बनेगी रेत
 प्रदेश में अब मेजर मिनरल की खदानों से बड़ी मात्रा में निकलने वाले पत्थरों से भी रेत बनाई जाएगी। इसके लिए लायसेंस जारी कर एम-सैंड यूनिट लगाई जाएंगी। इसके साथ अलग-अलग पत्थरों से बनने वाली एम-सैंड के लिए अलग-अलग रॉयल्टी की दरें और उसके रेट तय किए जाएंगे। जिन जिलों में रेत उत्खनन नहीं होता है वहां पर एम-सैंड प्लांट लगाए जाएंगे। इसके प्रावधान शामिल किए गए हैं। इस पॉलिसी के इसी महीने लागू करने की तैयारी की जा रही है। सरकार द्वारा नदियों से निकाली जाने वाली रेत की बजाय एम-सैंड (मैन्यूफेक्चर्ड सैंड यानी पत्थर से कृत्रिम तरीके से बनने वाली रेत) को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। सीएम ने पिछले साल समीक्षा बैठक में इस संबंध में निर्देश दिए थे।
नदियों से होता है 2.5 करोड़ घन मी. उत्खनन
मप्र में फिलहाल करीब 50 से ज्यादा नदियों से वैध रेत उत्खनन किया जाता है। इनमें 10 बड़ी नदियां ऐसी हैं, जहां बहुतायत में उत्खनन होता है। मप्र में सालभर में नदियों से करीब 2.5 करोड़ घन मीटर रेत निकाली जाती है। हालांकि, प्रदेश की सालाना जरूरत करीब 4 करोड़ घनमीटर रेत की है। यानी उत्खनन के बाद भी करीब डेढ़ करोड़ घनमीटर रेत की और जरूरत पड़ती है। नदियों से निकलने वाली रेत के मुकाबले एम-सेंड आम लोगों को भी ज्यादा सस्ती मिलेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके लिए रॉयल्टी की दरें केवल 50 रुपए प्रति घन मीटर रखी जा रही है। इसके अलावा प्लांट लगाने के लिए तीन अलग-अलग श्रेणियों में सब्सिडी देने का प्रावधान भी किया जा रहा है। नई पॉलिसी के तहत 10 करोड़ रुपए तक का प्लांट लगाने पर 40 प्रतिशत, 10-50 करोड़ रुपए तक के प्लांट पर 35 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जा सकती है। 50 करोड़ से ज्यादा बड़े प्लांट पर जल्द आने वाली मप्र उद्योग पॉलिसी में उद्योग विकास अनुदान देने का प्रस्ताव बनाया गया है। मप्र में ग्रेनाइट पत्थर काफी मात्रा में हैं, जो एम-सेंड बनाने के लिए सबसे उपयोगी माने जाते हैं। इसके अलावा सेंड स्टोन, बिसाल्ट और क्वार्डजाइट पत्थर भी इसके लिए उपयोगी हैं। नई पॉलिसी में प्रस्ताव दिया जा रहा है कि खनिज विभाग निजी जमीन पर परिवहन या उत्खनन अनुज्ञा देकर एम-सेंड तैयार करवाएगा। वहीं, सरकारी जमीन के लिए उद्योगपति को टेंडर प्रक्रिया पूरी करनी होगी।

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