
- मप्र की ग्वालियर हाई कोर्ट बेंच ने कहा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मुगल बादशाह अकबर के दरबार के नवरत्न तानसेन की समाधि को लेकर मामला सुर्खियों में है। मप्र की ग्वालियर हाई कोर्ट बेंच ने कहा है कि तानसेन की कब्र वाला स्मारक संरक्षित किए जाने का हकदार है। इसके साथ ही कोर्ट ने ग्वालियर में हजरत शेख मुहम्मद गौस की कब्र पर धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियां करने की अनुमति मांगने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति हृदेश की खंडपीठ ने कहा कि स्मारक को अत्यंत सावधानी और सतर्कता के साथ संरक्षित किया जाना चाहिए और अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई ऐसी किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा सकती। दरअसल हजरत शेख मुहम्मद गौस के मकबरे को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 के अनुसार 1962 में इसे राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था।
परिसर में सांस्कृतिक गतिविधियों की अनुमति नहीं
कोर्ट ने बीते 16 जून को सुनवाई के दौरान कहा, संवैधानिक दृष्टि और संवैधानिक नैतिकता को व्यक्तिगत और निहित स्वार्थ पर हावी होना चाहिए। यह स्मारक अत्यंत सावधानी और सतर्कता के साथ संरक्षित किए जाने का हकदार है। और याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अगर अनुमति दी जाती है तो स्मारक अपनी मौलिकता, पवित्रता और जीवन शक्ति खो देगा। जिसको राष्ट्रीय क्षति के रूप में देखा जाएगा। अदालती दस्तावेजों के अनुसार, उस परिसर में 16वीं शताब्दी के संगीतज्ञ तानसेन और सूफी संत हजरत शेख मुहम्मद गौस की कब्रें हैं। अदालत के दस्तावेजों में कहा गया है कि तानसेन को उनकी शास्त्रीय ध्रुपद रचनाओं के लिए याद किया जाता है। अदालत ने कहा, ध्रुपद संगीत का एक महाकाव्य है, जिसे मध्यकाल में राजा मान सिंह तोमर (ग्वालियर के शासक) द्वारा आविष्कार किया गया माना जाता है। सैयद सबला हसन की अपील पर अदालत में मामला चल रहा है। उन्होंने दावा किया था कि वो आध्यात्मिक देखभालकर्ता सज्जादा नशीन और हजरत शेख मुहम्मद गौस के कानूनी उत्तराधिकारी हैं।
हसन की ओर से तर्क दिया गया कि दरगाह परिसर में 400 वर्षों से अधिक समय से विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाएं निभाई जाती रही हैं। स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित करने के बाद अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इन्हें बंद करना मनमाना और अवैध है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय महत्व के इस स्मारक की अत्यंत सावधानी और सख्ती से रक्षा करना एएसआई और जिला प्रशासन का कर्तव्य है ताकि इतिहास और संस्कृति को समेटे इस स्मारक को संरक्षित किया जा सके।