
- सांप के डसने से एक व्यक्ति 38 बार मरा…
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में एक नया घोटाला सामने आया है। इस घोटाले के बारे में सुनकर लोग हैरान हैं। दरअसल, अधिकारियों-कर्मचारियों ने मुआवजे के लिए ‘मौत’ का खेल खेलकर सरकार को 11 करोड़ रुपए की चपत लगाई है। हैरानी की बात तो यह है कि एक आदमी को 38 बार सांप ने डसावा कर मुआवजा ले लिया। यह खेल सिवनी जिले में खेला गया। इस मामले में, सांप काटने से हुई मौतों के लिए मुआवजे के रूप में सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया है। सूत्रों के अनुसार, सिवनी जिले में एक वित्तीय अनियमितता सामने आई है। यहां लगभग 47 लोगों को कई बार मृत घोषित कर दिया गया, वह भी सांप काटने से। राज्य सरकार सांप काटने से होने वाली मौत के मामले में 4 लाख रुपए का मुआवजा देती है। इस मामले में भी दिया गया। जिससे 11.26 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। फर्जी मृतकों की सूची में, एक व्यक्ति को अलग-अलग दस्तावेजों में 30 बार सांप काटने से मरा हुआ दिखाया गया है। इसी तरह, एक अन्य व्यक्ति को 19 बार मृत घोषित किया गया। इस अनियमितता में कई अधिकारी शामिल हैं। वित्तीय विभाग की एक टीम ने इसकी जांच भी की। सिवनी जिले की केवलारी तहसील में यह बड़ा घोटाला सामने आया है। यहां कुछ लोगों को झूठे तरीके से सांप के काटने जैसी घटनाएं बताकर मृत घोषित कर दिया गया, ताकि सरकार से मिलने वाला 4 लाख रुपए का मुआवजा फर्जी तरीके से लिया जा सके। कोष और लेखा विभाग के संयुक्त निदेशक रोहित कौशल ने बताया कि जांच में सामने आया है कि अगर किसी की मौत सांप काटने या नदी में डूबने से होती है, तो सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाता है। इसी नियम का गलत फायदा उठाकर कई फर्जी मौतों के दस्तावेज तैयार किए गए और कोषालय से पैसे निकाल लिए गए। जांच अधिकारियों के मुताबिक, यह फर्जीवाड़ा साल 2019 से 2022 के बीच किया गया है। इस दौरान 47 अलग-अलग लोगों के बैंक खातों में करीब 11 करोड़ रुपए का मुआवजा जमा कराया गया। ये रकम गलत तरीके से सांप के काटने या हादसों से हुई नकली मौतों के नाम पर ली गई। जांच में खुलासा हुआ है कि इन सभी फर्जी मामलों में मृत्यु प्रमाण पत्र, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, और पुलिस वेरिफिकेशन तक मौजूद नहीं था। फिर भी बिल पास हुए और पैसे सीधे कोषालय स्तर से जारी कर दिए गए। मलारी गांव के संत कुमार बघेल (75) को सरकारी रिकॉर्ड में मरा हुआ दिखाया गया है. जबकि वे जिंदा हैं।
वित्त विभाग और पुलिस की जांच में अंतर
इस घोटाले की पुलिस और वित्त विभाग की जांच में अंतर सामने आ रहा है। पुलिस की जांच में एसडीएम तहसीलदार दोषी नहीं माने गए है। जबकि वित्त विभाग की जांच में 1 तत्कालीन एसडीएम, 3 तत्कालीन तहसीलदार और 1 तत्कालीन प्रभारी तहसीलदार को जिम्मेदार माना गया है। वित्त विभाग की जांच की पड़ताल में उजागर हुआ है कि जांच टीम ने दस्तावेजों का मिलान ही नहीं किया। इसका उल्लेख टीम ने जांच रिपोर्ट में खुद ही किया है। इससे जांच की निष्पक्षता को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे है। जबलपुर के संभागीय संयुक्त निदेशक (कोषागार और लेखा) रोहित सिंह कौशल ने मीडिया को बताया कि एक टीम ने मामले की जांच की और सिवनी कलेक्टर को आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट सौंपी।