- फर्जी बैंक गारंटी लगाकर ले लिए प्रोजेक्ट

विनोद उपाध्याय
मप्र के 51 हजार से अधिक गांवों में हर घर को नल से जल उपलब्ध कराने वाली जल जीवन मिशन योजना में बड़े स्तर पर गड़बड़ी और फर्जीवाड़ा सामने आ रहा है। इस गड़बड़ी को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों के विधायक आवाज उठा रहे हैं। मामला विधानसभा में भी उठ चुका है। इसी कड़ी में जल जीवन मिशन में बड़े स्तर पर गड़बड़ी सामने आई है। जानकारी के अनुसार अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से गड़बड़ी की गई है। इसके तहत फर्जी बैंक गारंटी लगातर अरबों रूपए के प्रोजेक्ट लिए गए हैं। मिली जानकारी के अनुसार जल जीवन मिशन में योजना पर अमल की जिम्मेदारी संभाल रहे मप्र जल निगम में करोड़ों रुपए का घोटाला हुआ है। यहां 311 करोड़ रुपए फर्जी बैंक गारंटी लगा कर कंपनियों ने अरबों के प्रोजेक्ट हासिल कर लिए। बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से यह फर्जीवाड़ा किया। जल निगम के अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी, जबकि बैंक प्रबंधन ने डेढ़ साल पहले ही यह फर्जीवाड़ा पकड़ लिया था। निगम को इसकी जानकारी अब दी।
दो कंपनियों के नाम फर्जीवाड़े में आए
सूत्रों के मुताबिक शुरुआती जांच में दो ठेकेदार कंपनियों के नाम सामने आए हैं। इनमें तीरथ गोपीकॉन लिमिटेड और एमपी बावरिया लिमिटेड-अंकित कस्ट्रक्शन के संयुक्त उपक्रम का नाम शामिल है। इनको करीब दो साल पहले पेयजल योजनाओं का जिम्मा सौंपा गया था। इसके एवज में उन्हें कुल लागत की 10 फीसदी राशि परफॉर्मेंस बैंक गारंटी और मोबिलाइजेशन एडवांस के लिए गारंटी जमा की थी। इसके आधार पर निगम ने ठेकेदार से करार कर लिया। बताया जा रहा है इन दो ठेकेदार कंपनियों ने काम लेने के लिए फर्जी बैंक गारंटी लगा दी। इसकी भनक संबंधित अधिकारियों को नहीं लगी। बैंकों को शक हुआ तो उन्होंने जांच कराई और नवंबर 2023 में ही इसका खुलासा हो गया। इसके बाद बैंक ने अपने अफसरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी, लेकिन जल निगम को अप्रैल 2025 में इसकी जानकारी दी। मप्र जल निगम के एमडी वीएस चौधरी कोलसानी का कहना है कि 6 फर्जी बैंक गारंटी का मामला सामने आया है। दोनों ठेकेदारों को टर्मिनेशन लेटर जारी कर रहे हैं।
पहले भी सामने आईं हैं बड़ी गड़बडिय़ां
जल जीवन मिशन की गड़बडिय़ां लगातार उजागर हो रही हैं। केंद्र की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि जिन गांवों में एक भी नल नहीं लगा, वहां मिशन के तहत काम पूरा होना दिखा दिया गया है। वहीं, जिन गांवों में इस मिशन के तहत पानी सप्लाई हो रहा है, उनमें से कई जगह पीने का पानी साफ नहीं है। दरअसल, 2024 में भी मिशन का काम पूरा होता न देखकर केंद्र ने जुलाई में इसकी जमीनी स्तर पर जांच कराई। इसके लिए एक निजी एजेंसी को मप्र के 1,271 सर्टिफाइड गांवों में हुए कार्यों की जांच का जिम्मा सौंपा गया। जांच में केवल 209 गांवों में सभी जरूरी मानक पूरे पाए गए। वहीं, 217 गांवों में नल कनेक्शन तो हुए, लेकिन पानी की सप्लाई नहीं हो रही है। खास बात यह है कि 9 जिलों के 13 गांव ऐसे हैं जहां नल कनेक्शन तक नहीं मिल पाए हैं, जबकि यहां कार्य पूरा होना बताया है। सबसे खराब स्थिति अलीराजपुर और सिंगरौली जिलों के गांवों की है। रिपोर्ट के मुताबिक, 778 गांवों के पानी की जांच में 390 सैंपल अमानक पाए गए, जिनमें बैक्टीरियल कंटामिनेशन मिला है। इससे मिशन के तहत कार्य पूरे होने के जरूरी दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। खास बात यह है कि यह सर्वे जुलाई में, यानी बारिश के दौरान किया गया था, जब भूजल स्तर बेहतर होता है। 19 नवंबर को केंद्र ने यह रिपोर्ट प्रदेश सरकार को भेजी है। केंद्र की रिपोर्ट मिलने के बाद अब लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) ने भी प्रमुख अभियंता से जवाब तलब कर लिया है। अवर सचिव शैलेष कुमार जैन ने पत्र लिखकर सवाल किया है कि इस मामले में क्या कोई कार्रवाई की गई है, यदि हां तो क्या? थर्ड पार्टी एजेंसी ने सर्वे में जल परीक्षण के लिए जो सैंपल लिए, उनमें 48.70 प्रतिशत सैंपल जीवाणु पैरामीटर में और 50.80 प्रतिशत सैंपल रासायनिक पैरामीटर में उपयुक्त नहीं पाए गए।
सीएस के पास पहुंची शिकायत
जल जीवन मिशन में हुई इस गड़बड़ी का मामला मुख्य सचिव तक पहुंच गया है। मुख्य सचिव की नाराजगी के बाद ईओडब्ल्यू में आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई गई है। बताया जा रहा है एक-दो दिन में ठेकेदार कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है। पीएचई के साथ जल निगम मिशन को अमलीजामा पहना रहा है। बताया जा रहा है कि निगम के पास ही 30 हजार करोड़ से अधिक के प्रोजेक्ट हैं। इनको निजी ठेकेदारों की मदद से किया जा रहा है। सामान्य तौर पर किसी विभाग में कार्य के लिए जब ठेकेदार परफॉर्मेंस गारंटी के तौर पर बैंक गारंटी लगाता है, तो इसका सत्यापन कराना संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी होती है। वह किसी अधिकारी या कर्मचारी को भेज कर बैंक प्रबंधन से इसकी पुष्टि कराता है। बताया जा रहा है कि जल निगम के अधिकारियों ने बैंक को ई-मेल भेज कर पुष्टि चाही थी। फर्जीवाड़े में शामिल बैंक अफसरों ने इसका सत्यापन भी कर दिया और ठेकेदार कंपनियों ने काम शुरू कर दिया।