कर्मचारी पदोन्नति मामलें में दोनों संगठन अपनी मांगो पर अड़े

कर्मचारी पदोन्नति मामलें

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। जिन दो कर्मचारी संगठनों की लड़ाई में कर्मचारियों की पदोन्नति का मामला अटका था, वह सरकार के निर्णय के बाद अब हालांकि चुप्पी साधे हुए हैं, लेकिन वे अब भी अपनी मांगों से हिलने को तैयार नही हैं। दरअसल, नौ सालों के लंबे इंतजार के बाद सरकार ने शासकीय सेवकों को पदोन्नति देना तय किया है। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा प्रारुप भी तैयार कर लिया गया है, जिसे अब सरकार अंतिम रुप देगी। इसके बाद आगे के कदम उठाए जाएंगे।  हालांकि इस पर कर्मचारी संगठन कितने तैयार होते हैं उन पर निर्भर करता है। सपाक्स और उससे जुड़े कर्मचारियों का एक धड़ा पदोन्नति संबंधी नियमों में अनारक्षित शब्द हटाकर वर्गवार वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति देने के पक्ष मे है, उधर , अजाक्स व उससे जुड़े अधिकारी, कर्मचारी 2002 के पदोन्नति नियमों के आधार पर पदोन्नति देने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, प्रदेश में 2016 से पदोन्नति की प्रक्रिया पूरी तरह से बंद पड़ी हुई है। इसकी वजह से हजारों कर्मचरी बगैर पदोन्नत हुए ही सेवानिवृत्त होने पर मूजबूर हो चुके हैं। अब इस मामले में सीएम डॉ. मोहन यादव की पहल पर पदोन्नति की प्रक्रिया फिर से शुरु की जा रही है। माना जा रहा है कि  सब ठीक रहा तो मई में पदोन्नति की नई नीति की घोषणा की जा सकती है। प्राथमिक पद पर पांच वर्ष की सेवा पूर्ण करने के बाद पदोन्नति मिलती है, जो कि लंबे वर्षों तक दी जाती रही। कुछ मामलों में नियमों को शिथिल करते हुए ढाई वर्ष में भी दी गई। यह वरिष्ठता सूची के आधार पर दी जाती थी लेकिन अकेले वरिष्ठता सूची से काम नहीं चलता था, इसके लिए 64:20:16 जैसे फॉर्मूले होते थे। किसी विभाग में किसी संवर्ग के 100 पद खाली होते थे तो 64 पर सामान्य के, 20 एससी के और 16 पदों पर एसटी कर्मियों को पदोन्नति मिलती थी। सामान्य में वरिष्ठता के आधार पर एसटी, एससी वर्ग के कर्मी भी शामिल किए जाते थे।
इनका कहना है  
2002 के नियमों के आधार पर लाभ मिले या फिर संवैधानिक नियमों के तहत सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गोरकेला द्वारा बनाए नियमों के आधार पर पदोन्नति दी जाए। प्रशासन के सामने यही पक्ष रखे हैं।  
– घनश्याम दास भकोरिया,  अध्यक्ष, मंत्रालय अजाक्स शाखा
क्रीमीलेयर व्यवस्था लागू करें। इसके तहत जिन कर्मी की सालाना आय 8 लाख से ज्यादा है, उन्हें पदोन्नति में आरक्षण न दिया जाए। एम. नागराज मामले से जुड़े फैसले में 2002 के नियम को खारिज किया गया था, इसलिए उक्त नियमों के तहत दी गई पदोन्नति को रिवर्ट किया जाए।
-डॉ. केएस तोमर, सपाक्स  प्रदेश अध्यक्ष

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