विकास का नया मॉडल बन रहा मप्र

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  • मोहन ‘राज’ की नीति अन्य राज्यों को भायी

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मप्र के हर क्षेत्र में एक समान विकास का जो मॉडल बनाया है, उसकी केंद्र सरकार के साथ ही अन्य राज्य भी सराहना कर रहे हैं। इस कारण मप्र विकास का नया मॉडल बन गया है। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में मप्र की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ेगा, वहीं रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
दो दशक पहले बीमरू राज्य में शामिल मप्र आज विकास का रोल मॉडल बनकर उभर रहा है। खासकर जबसे डॉ. मोहन यादव ने मप्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है, उन्होंने मप्र को विकास का नया मॉडल बनाने का अभियान शुरू कर दिया है। इसके लिए उनका प्रदेश के हर हिस्से में एक समान विकास पर फोकस है। इसके लिए उन्होंने मंत्रियों, विधायकों, सांसदों को जिम्मेदारी तो दी ही है, वहीं अफसरों को भी फ्री-हैंड देकर काम पर लगाया है। सरकार की ऐसी ही नीतियों और रणनीति का परिणाम है कि आज मप्र अब बीमरू राज्य नहीं रहा। देश के टॉप-10 धनी राज्यों में इसकी गिनती होने लगी है। 13.87 लाख करोड़ रुपए की जीडीपी के साथ अर्थव्यवस्था के मामले में देश में 10वें नंबर पर आ चुका है। तरक्की का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मप्र 9वें नंंबर पर काबिज तेलंगाना से बस 1 पायदान पीछे है। मप्र सरकार प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र को विकास का मॉडल बनाएगी। यानी हर विधानसभा क्षेत्र में आवश्यक सुविधाओं के साथ ही वह सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी, जो वहां के निवासियों में गर्व का भाव भर सके। इसके लिए सरकार विधानसभा क्षेत्र की जरूरत के हिसाब से योजना बना रही है। इसके लिए हर विधानसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रूपए के विकास कार्य कराए जाएंगे। जानकारी के अनुसार सरकार ने विधायकों से अपने विधानसभा क्षेत्र में कराए जाने वाले विकास कार्यों का प्रस्ताव मांगा है। विधायकों से प्रस्ताव मिलने के बाद सरकार आगामी चार साल में विकास कार्यों को अमलीजामा पहुंचाने पर काम करेगी।
गौरतलब है की मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का पूरा फोकस प्रदेश में एक समान विकास पर है। इसके लिए वे रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है। दरअसल, सरकार की कोशिश है कि चार साल में विधानसभा क्षेत्रों कोआदर्श बनाया जाए। स्कूल, बिजली, पानी, सडक़, नाली, सामुदायिक भवन, आंगनबाड़ी केंद्र समेत सभी सुविधाएं होंगी। केंद्र और राज्य सरकार की सभी योजनाओं से पात्रों को लाभांवित किया जाएगा। रोजगार के लिए मेलों का आयोजन होगा तो खेलकूद की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के साथ गोवंश के सरंक्षण और पर्यटन की गतिविधियों के विकास पर ध्यान दिया जाएगा। मुख्यमंत्री कार्यालय ने विधायकों से विधानसभा क्षेत्र के विकास संबंधी दृष्टि पत्र मांगा है। इसे तैयार करने के लिए प्रारूप भी भेजा गया है। योजना में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे। मप्र में सरकार चाहती है की प्रदेश के विकास में सबकी भूमिका हो। इसके लिए सरकार ने तय किया है कि विधानसभा क्षेत्रों को आदर्श बनाया जाएगा। इसके लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से दी जाने वाली राशि के साथ विधायक, सांसद निधि और कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी का उपयोग किया जाएगा। जो राशि और लगानी होगी, वह सरकार अपने वित्तीय संसाधनों से लगाएगी। मुख्यमंत्री कार्यालय ने सभी विधायकों को दृष्टि पत्र का प्रारूप भेजा है। इसमें बताया गया कि दृष्टि पत्र तैयार करते समय विधायक क्षेत्र की महत्वपूर्ण समस्याओं का आकलन करें। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण, आंगनबाड़ी, कौशल विकास, पेयजल, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, यातायात, गोवंश संरक्षण, पर्यटन, रोजगार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कार्य प्रस्तावित करें। एक जिला-एक उत्पाद योजना के माध्यम से कैसे रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं, इस पर विचार अवश्य किया जाए। साक्षरता की दर बढ़ाने, शिशु एवं मातृ स्वास्थ्य में सुधार, कुपोषण में कमी लाने, स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए भी कार्ययोजना बनाई जाएगी। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने विधायकों से 15-15 करोड़ रुपये के क्षेत्र में विकास से संबंधित प्रस्ताव मांगे थे। अधिकतर सदस्यों ने सडक़, पुल-पुलिया, सामुदायिक भवन आदि के प्रस्ताव दिए थे, जिन्हें विभिन्न योजनाओं में सम्मिलित कर काम स्वीकृत कराए गए। विधानसभा क्षेत्र के लिए बनने वाली कार्ययोजना में केंद्र और राज्य सरकार की सभी हितग्राहीमूलक योजनाओं को शामिल किया जाएगा। सभी पात्र व्यक्तियों को योजनाओं का लाभ दिलाने के साथ अपात्रों को चिह्नित करने का काम भी होगा। दृष्टि पत्र के माध्यम से जो लक्ष्य निर्धारित किए जाएंगे वे दो और चार वर्ष की अवधि के लिए होंगे। दृष्टि पत्र के माध्यम से विधानसभा क्षेत्र के विकास के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए जाएंगे, उनकी पूर्ति के लिए जिम्मेदारी भी तय होगी। प्रगति की नियमित जिला और राज्य स्तर पर समीक्षा की व्यवस्था रहेगी। योजना के लिए आवंटित धन का उपयोग पारदर्शी तरीके से किया जाएगा और लेखा-जोखा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध भी कराया जाएगा। सरकार प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये के काम कराने के लिए राशि की व्यवस्था अलग-अलग मदों से करेगी। इसमें 40 करोड़ रुपये की व्यवस्था विधायक निधि, सांसद निधि, जनभागीदारी, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी और पुनर्घनत्वीकरण से की जाएगी। शेष 60 करोड़ रुपये सरकार अपने खजाने से देगी। प्रतिवर्ष 15-15 करोड़ रुपये दिए जाएंगे।

ग्रामीण विकास को तरजीह
प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर अपना एकाधिकार जमाने के बाद प्रदेश की भाजपा सरकार उत्साहित भी है और विकास की नई कहानी लिखने की तरफ अग्रसर हो रही है। ग्रामीण विकास को तरजीह देने वाला एक फैसला अब प्रदेश की मोहन सरकार लेने वाली है। प्रदेश की सभी 230 विधानसभाओं में एक एक मॉडल गांव तैयार करने के लिए अब सरकार विधायकों को उनकी विधानसभा का कोई एक गांव गोद लेने की बाध्यता करने वाली है। इसी के चलते प्रदेश की हर विधानसभा में एक एक मॉडल गांव तैयार करने की योजना बनाई गई है। बताया जा रहा है कि इन चिन्हित गांवों के समग्र विकास की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के विधायक पर होगी। इसके लिए सांसदों की तरह सभी विधायकों को भी उनकी विधानभा क्षेत्र का एक गांव गोद लेना होगा। विधायकों द्वारा गोद लिए जाने वाले आदर्श ग्राम की प्राथमिकताओं में सडक़, पानी, सीवेज, स्वच्छता तो होगी ही। साथ ही इन गांवों में शिक्षा और स्वास्थ्य को खास महत्व दिया जाएगा। कोशिश यह भी की जाएगी कि इन गांवों में सरकारी योजनाओं के अलावा निजी सेक्टर से रोजगार के साधन मुहैया कराए जाएं। ताकि ग्रामीणों को अपनी धरती से पलायन का दंश न झेलना पड़े। मप्र को गांवों का प्रदेश कहा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक यहां 54 हजार से ज्यादा गांव मौजूद हैं। हालंकि केंद्र और प्रदेश की विभिन्न योजनाओं ने इन गांवों तक सडक़, पानी, बिजली की सुविधाएं पहुंचाई हैं। प्रदेश सरकार के नए कदम से हर विधानसभा में एक एक गांव विकसित किया जाता है तो कुल 230 गांवों तक सुविधाएं पहुंचेंगी। इसके अलावा प्रदेश के सांसदों को भी उनकी संसदीय सीमा में एक गांव गोद लेने की व्यवस्था है। इस लिहाज से प्रदेश के ढाई सौ से ज्यादा गांव पहले से ज्यादा विकसित हो सकते हैं। पूर्व व्यवस्था के मुताबिक प्रदेश के सांसद अपने क्षेत्र के गांव गोद तो ले लेते हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश सांसद जिम्मेदारी लेने के बाद वे अपने कर्तव्य से विमुख ही दिखाई दिए हैं। गोद लेने के बाद कई गांवों का यह हश्र भी हुआ है कि संबंधित सांसद पूरे कार्यकाल में उस गांव तक पहुंचे ही नहीं हैं। प्रदेश में नई व्यवस्था की शुरुआत के साथ इस बात पर ध्यान रखना भी जरूरी होगा कि संबंधित विधायक इसके प्रति गंभीरता दिखाएं।
राज्य सरकार अब सब्सिडी और सेवाओं के खर्च पर कटौती करने जा रही है, तो पूंजीगत व्यय (मशीनरी, भवन, स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधाओं) पर खर्च बढ़ाएगी। केंद्रीय बजट के बाद अधिकारियों की बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस पर काम करने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने मंत्रियों और अफसरों से कहा है कि खर्चों में कटौती एवं आय बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाएं। मुख्यमंत्री ने कहा कि अधिकारी बजट की तुलना करते हुए भविष्य के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य करें। सभी विभागों की बैठक कर योजनाओं के क्रियान्वयन एवं बजट के प्रावधान पर समीक्षा की जाएगी। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि पूंजीगत व्यय को बढ़ाने और राजस्व व्यय को कम करने की दिशा में काम करना होगा। इसके लिए सभी मंत्री अपने विभागों की समीक्षा करें। मंत्रियों और अफसरों के साथ चर्चा में योजनाओं को निरंतर रखने और आय बढ़ाने पर विचार किया गया। साथ ही खर्चों की कटौती कर आय कैसे बढ़ा सकते हैं, इस पर भी गहन मंथन किया गया। केंद्रीय बजट के बाद अधिकारियों की बैठक में सीएम यादव ने कहा कि बजट में अधोसंरचना, पंचायत एवं ग्रामीण विकास सहित अन्य क्षेत्रों के विकास पर बल दिया गया है। इसलिए केंद्रीय बजट में किए गए प्रावधानों को ध्यान में रखकर कार्य करें। मप्र के संदर्भ में इसका लाभ उठाने के प्रयास किए जाएं। नगरीय निकायों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास भी जारी हैं। उन्होंने प्लानिंग एवं प्रतिबद्धता से कार्य करने के अधिकारियों को निर्देश दिए। लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य हों। बिजली, पानी, उद्योग, शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई कमी नहीं छोड़ें। प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए। जल संसाधन विभाग के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा राशि केंद्र सरकार से प्राप्त करने की कोशिश की जाए। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने उच्च शिक्षा एवं स्कूल शिक्षा के लिए किए गए बजट प्रावधान के हिसाब से काम हो। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना, प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान में प्रदेश को लाभ देने की कार्ययोजना बनाएं। पूंजीगत व्यय में मशीनरी, भवन, स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा सुविधाओं के साथ भूमि अधिग्रहण, भविष्य में लाभ या लाभांश देने वाले निवेश शामिल हैं। सरकारी विभागों की सेवाओं में होना वाला खर्च राजस्व व्यय की कैटेगरी में आता है। इसमें वेतन भत्ते, ऋण पर ब्याज की अदायगी, बिजली समेत अन्य सब्सिडी, किराया, टैक्स, माल ढुलाई, मजदूरी, कमीशन, कानूनी खर्च आदि शामिल हैं।

इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर जोर
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का इंफ्रास्ट्रक्चर विकास भी पर फोकस है। गौरतलब है कि अधोसंरचना विकास के लिए वित्तीय वर्ष 2024-25 में मप्र को 10,500 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है। इसमें 9,750 करोड़ रुपये राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं के लिए मिलेंगे। लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार ने अधोसंरचना विकास को प्राथमिकता में रखा है। इसके लिए 11.11 लाख करोड़ रुपये का प्रविधान किया है। राज्यों को अधोसंरचना निर्माण के लिए डेढ़ लाख करोड़ रुपये के दीर्घावधि ब्याज मुक्त ऋण का प्रविधान किया है। वर्ष 2029 में होने वाले सिंहस्थ के लिए मोहन सरकार ने तैयारी प्रारंभ कर दी हैं। श्रद्धालुओं के लिए आवागमन की सुविधा को देखते उज्जैन महाकाल रोप वे बनाया जा रहा है। इसके लिए बजट में 50 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। इसी तरह पीथमपुर में विकसित किए जा रहे मल्टी मॉडल लाजिस्टिक पार्क के लिए 60 करोड़ रुपये रखे गए हैं। केंद्रीय सडक़ निधि के अंतर्गत सेतु बंधन योजना में फ्लाई ओवर समेत अन्य परियोजनाओं की तीन हजार करोड़ रुपये की स्वीकृतियों के लिए 750 करोड़ रुपये इस वित्तीय वर्ष में दिए जाएंगे। इसी तरह भारतमाला, पर्वतमाला, एक्सप्रेस वे समेत राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं के लिए नौ हजार 750 करोड़ रुपये का अनुमानित प्रविधान किया है। सडक़ों के संधारण के लिए ढाई सौ करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना में अब एक लाख रुपये तक बैंक से ऋण दिलाया जा सकता है। सरकार अपनी गारंटी पर अभी पथ विक्रेताओं को तीन चरणों में 50 हजार रुपये तक ऋण दिलवाती है। जो ऋण राशि समय पर लौटा देते हैं, उन्हें एक लाख रुपये तक राशि दिलवाए जाने का सुझाव मिला है। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने योजना की समीक्षा करते हुए कहा कि रोजगार के विस्तार के लिए एक लाख रुपये तक ऋण दिलाने पर विचार कर निर्णय लिया जाएगा। प्रदेश में पीएम स्वनिधि योजना अंतर्गत अब तक 12 लाख 34 हजार 707 को तीन वर्ष में 21 करोड़ रुपये की राशि बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराई जा चुकी है। इस पर ब्याज अनुदान भी सरकार ही देती है। योजना के क्रियान्वयन को लेकर प्रदेश को केंद्र सरकार पुरस्कृत भी कर चुकी है। प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी में 9. 9 लाख आवास बनाने के लक्ष्य के विरुद्ध 7.89 लाख आवास बनाकर मप्र देश में प्रथम स्थान पर है। एक लाख 60 हजार आवास इस वर्ष के अंत तक पूर्ण किए जा रहे हैं। बैठक में बताया गया कि प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में 72 हजार 965 किलोमीटर सडक़ें बन गई है। अमृत सरोवर बनाने के कार्य में मप्र देश में द्वितीय स्थान पर है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने केंद्रीय बजट के परिप्रेक्ष्य में मंगलवार को बुलाई प्रदेश के बजट की समीक्षा बैठक में अधिकारियों को कई निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बजट में अधोसंरचना, पंचायत एवं ग्रामीण विकास सहित अन्य क्षेत्रों में विशेष जोर दिया गया है। इसके प्रविधान को ध्यान में रखकर काम करें। इसका पूरा लाभ उठाया जाए। भोपाल और इंदौर में मेट्रोपालिटन सिटी के विकास कार्य किए जा रहे हैं। खर्चों में कटौती एवं आय बढ़ाने के लिए प्रयास करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य, पानी, उद्योग, शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई कमी नहीं छोड़ें। प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए। जल संसाधन विभाग के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा राशि केंद्र सरकार से प्राप्त करने की कोशिश करें। पूंजीगत व्यय को बढ़ाने और राजस्व व्यय को कम किया जाए। सभी मंत्री अपने विभागों की समीक्षा करें।

नीतियों में हुए कई परिवर्तन
प्रदेश में विकास और रोजगार के लिए सरकार ने अपनी नीतियों में कई परिवर्तन किया है। उद्योगों के लिए आवश्यक सडक़, बिजली, पानी, और अधोसंरचना सहित सुशासन के हर पैमाने में मप्र निवेशकों के लिए पहली पसंद बन रहा है। किसी समय बीमारू के नाम से बदनाम मप्र अब विकासशील राज्य की तरफ बढ़ गया है। यहां के उद्योग मित्र माहौल का ही परिणाम है कि पिछले 10 वर्षों में यहां तीन लाख करोड़ के उद्योग धंधे लगे और दो लाख युवाओं को रोजगार मिला। औद्योगिक घरानों का भरोसा जीतने के लिए राज्य सरकार के प्रयासों को लगातार सफलता मिल रही है। सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम, बिना अनुमति उद्योग की स्थापना सहित जो वादे उद्योग जगत से किए हैं, उन्हें धरातल पर उतारा जा रहा है। हालांकि, अब भी कुछ कमियां हैं, जैसे उद्योगों की स्थापना से जुड़े विभागों के अधिकारियों की कार्य संस्कृति में सुधार लाना पड़ेगा। ऐसा हुआ तो मप्र देश के उन अग्रणी राज्यों में शामिल हो जाएगा, जहां सर्वाधिक निवेश होता है। कम लागत और बड़ा काम। यही वो तरीका है जो अर्थव्यवस्था को गति देकर मप्र की तस्वीर बदल सकता है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) का विस्तार सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराने का माध्यम बन सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार इसे प्राथमिकता में ले और वो सभी सुविधाएं उपलब्ध कराए जो छोटे उद्योगों के लिए वातावरण बनाने का काम करें। सरकार भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। 194 औद्योगिक क्षेत्र केवल एमएसएमई के लिए बनाए गए हैं और प्रदेश के एमएसएमई सेक्टर में क्लस्टर बनाए गए हैं। सरकार के अनुसार तीन लाख 54 हजार एमएसएमई इकाइयों को पंजीकृत किया है। इनमें 18.33 लाख नौकरियां उत्पन्न करने की क्षमता है। इसके साथ-साथ ग्रामीण कुटीर उद्योग पर भी फोकस करना होगा। स्थानीय स्तर पर इसको लेकर काफी संभावनाएं भी हैं। मप्र में 10 साल में 30 लाख 13 हजार 41.607 करोड़ रुपये के 13 हजार 388 निवेश प्रस्ताव आए। इनमें तीन लाख 47 हजार 891 करोड़ रुपये के 762 पूंजी निवेश हुए हैं। इन पूंजी निवेश से प्रदेश में दो लाख सात हजार 49 बेरोजगार को रोजगार मिला है। इसी तरह वर्ष 2007 से अक्टूबर 2016 तक आयोजित इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन पर 50.84 करोड़ रुपये व्यय किए गए और 366 औद्योगिक इकाइयों को 1224 करोड़ रुपये की अनुदान राशि दी गई। मप्र से अधिकांश उत्पादों को जीआई टैग दिलाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें आदिवासियों की पारंपरिक औषधियों, खाद्यान्न और उनकी कलात्मक वस्तुओं को प्राथमिकता दी जाएगी। जीआई टैग सबसे अधिक दक्षिण भारत के हैं। मप्र सरकार का प्रयास है कि प्रदेश के छोटे से छोटे उत्पाद को जीआई टैग मिले। वर्तमान में मप्र में 21 उत्पादों को जीआई टैग मिला है। मप्र के एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) की ब्रांडिंग की जा रही है। इसके लिए अलग से एक सेल गठित किया गया है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में प्रस्तुत देश के आर्थिक सर्वेक्षण 2023 में मप्र में सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के नवाचारी प्रयासों का विशेष उल्लेख किया गया है। आर्थिक सर्वेक्षण में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत इंदौर के 500 टन प्रतिदिन उत्पादन क्षमता वाले बायोफयूल प्लांट का उल्लेख केस स्टडी के रूप में किया गया है। इसे 2021 में इंदौर नगर निगम द्वारा स्थापित किया गया था। यह प्लांट आकल्पन-निर्माण-वित्त संचालन और हस्तांतरण के माडल पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी के आधार पर संचालित है। प्लांट करीब 44 से 45 हजार क्यूबिक मीटट बायो गैस प्रतिदिन बनाता है, जिससे करीब 17 हजार किलो बायो-सीएनजी प्रतिदिन बनती है। इस प्लांट से सालाना एक लाख तीस हजार टन कार्बन डायआक्साइड उत्सर्जन को रोकने में मदद मिली है। इंदौर के बायो-सीएनजी प्लांट की प्रसंस्करण क्षमता 400 मीट्रिक टन प्रतिदिन है। इससे जैविक कचरे का प्रसंस्करण होता है, जिससे प्रतिदिन 14.8 मीट्रिक टन बायो-सीएनजी और 80 मीट्रिक टन फरमेंटेड जैविक खाद बनती है। इसके अलावा नदी जोड़ो परियोजना के अंतर्गत लिंक परियोजना का उल्लेख है जिसमें केन-बेतवा लिंक परियोजना, परिवर्तित-पार्बती-कालीसिंध चंबल लिंक परियोजना का उल्लेख किया गया है। केन- बेतवा लिंक परियोजना नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान के अंतर्गत पहली परियोजना है जिसका अनुमोदन 2021 में किया गया था। इसके लिये केन्द्र सरकार की ओर से 39,317 करोड़ रूपये का सहयोग मिला है। इसे मप्र द्वारा उत्तर प्रदेश और केन्द्र सरकार के परस्पर सहयोग से क्रियान्वित किया जायेगा। सर्वेक्षण में नीति आयोग के सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल के इंडेक्स 2023-24 का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि जो दस नये राज्य सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल हासिल करने में आगे रहे हैं उनमें मप्र शामिल है। वर्ष 2018 से 2023-24 के बीच मप्र 15 अंकों के साथ सर्वाधिक तेजी से आगे बढ़ते राज्यों शामिल है। सर्वेक्षण में किसान हितैषी नीति के फ्रेमवर्क का उल्लेख करते हुए मप्र की भावांतर भुगतान योजना की चर्चा की गई है। टीचिंग-लर्निंग और परिणाम को सुदढ़ बनाने में मप्र ने सभी छह मापदंड पूरे किये हैं।

दो दिन विकास पर चर्चा
मप्र में विकास की गति को बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंत्रियों, विधायकों और अफसरों को निर्देशित किया है कि वे सप्ताह में दो दिन आपस में मिल बैठकर विकास का खाका तैयार करें और उसे क्रियान्वयन की रणनीति पर चर्चा करें। यानी प्रदेश के सभी भाजपा विधायक अब हर सोमवार और मंगलवार को भोपाल में रहेंगे। भोपाल में रुककर ये विधायक अपने क्षेत्र के विकास कार्यों को लेकर मुख्यमंत्री और मंत्री से मुलाकात करेंगे। इस मुलाकात के जरिए विधानसभा क्षेत्रों के रोडमैप पर होने वाले काम की जानकारी देंगे। जिससे कामों में तेजी लाई जा सकेगी। मंत्रियों से भी कहा है कि वे विधायकों से मिलें और उनकी बातों को तवज्जो दें। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंत्रियों के लिए पहले ही निर्देश दे रखे हैं कि वे सोमवार और मंगलवार को भोपाल में रहेंगे और इसके बाद जिलों में या क्षेत्र के दौरे पर रहेंगे। सोमवार और मंगलवार को आमतौर पर कैबिनेट की बैठक होती है। इसलिए मंत्रियों के लिए यह व्यवस्था लागू की गई है। इस बीच मंत्रियों की भोपाल में मौजूदगी के मद्देनजर विधायकों को भी इस दौरान भोपाल में रहने के लिए कहा है। सीएम यादव ने कैबिनेट बैठक में अनौपचारिक संवाद में मंत्रियों से कहा है कि सोमवार और मंगलवार को विधायक भोपाल में रहेंगे और उनसे मुलाकात करेंगे तो उनकी बातों को सुनना और क्षेत्र के विकास व अन्य जरूरी समस्याओं के निराकरण का काम करना है।
विधायकों के सोमवार और मंगलवार को भोपाल में रहने के दौरान उनके क्षेत्र के मसलों को लेकर मंत्रालय और डायरेक्टोरेट के अफसरों को भी निर्देश दिए गए हैं कि वे उनकी बातों को सुनें। बताया जाता है कि मौखिक निर्देश के जरिए लागू की गई व्यवस्था के बाद अब भाजपा विधायक हर सोमवार और मंगलवार को अपने क्षेत्र के रोडमैप और अन्य कार्यों को लेकर भोपाल में रुकने भी लगे हैं। मऊगंज विधायक प्रदीप पटेल से जब संवाददाता ने इसकी पुष्टि की तो उन्होंने कहा कि सीएम के निर्देश पर यह व्यवस्था बनी है और मंत्रियों व अधिकारियों से मुलाकात करते हैं। इसके बाद सत्ता और संगठन से संबंधित मामलों के अलावा क्षेत्रीय जनता के दुख सुख में सहभागी बनने अपने क्षेत्र में रहते हैं। सीएम मोहन यादव ने यह व्यवस्था पिछले माह विधायकों के साथ संभागवार की गई बैठकों के बाद लागू की है। बताया जाता है कि कई विधायकों ने मंत्रियों से मुलाकात नहीं हो पाने और तवज्जो नहीं मिलने का मसला संभागवार बैठक के दौरान उठाया था। इसके बाद सीएम यादव ने मंत्रियों को भी कहा कि विधायकों की सुनें और विधायकों को भी सोमवार व मंगलवार को भोपाल में रुककर क्षेत्र विकास के काम कराने के लिए कहा है। मप्र सरकार ने शासकीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को बहुत बड़ी राहत दी है। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार ने राज्य सरकार के कर्मचारियों और पेंशनधारियों के महंगाई भत्ते में चार प्रतिशत की वृद्धि का फैसला करके लाखों लोगों के जीवन को और खुशहाल बनाने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है। सबसे बड़ी बात ये है कि एमपी सरकार ने महंगाई भत्ते बढ़ाने के फैसले को जुलाई महीने से ही प्रभावी कर दिया है। मतलब, आने वाली सैलरी से ही कर्मचारियों और पेंशनधारियों को इस फैसले का लाभ मिलने लगेगा, सरकार ने उन्हें इंतजार करने के लिए नहीं छोड़ा है।

देश का दौलतमंद राज्य बना मप्र
मप्र राज्य की अर्थव्यवस्था ने पिछले एक दशक में रिकॉर्ड बनाए हैं। भले ही सरकार पर ज्यादा कर्ज लेने के आरोप लगते रहे हैं पर राज्य की जीएसडीपी यानी सकल राज्य घरेलू उत्पाद को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। वर्ष 2023-24 में मप्र की जीएसडीपी 13.87 लाख करोड़ रही है। वहीं 2023 में मप्र में पर कैपिटा इनकम यानी प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 55 हजार 583 रु रही। माना जा रहा है कि प्रदेश आने वाले समय में तरक्की की और ऊंची छलांग लगाते हुए देश की अर्थव्यवस्था में अपना बहुमूल्य योगदान देगा। मप्र बजट एनालिसिस 2022 की रिपोर्ट में पाया कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने वाले टॉप 3 जिले इंदौर, भोपाल और जबलपुर हैं। यहां राज्य की जीडीपी में सबसे ज्यादा योगदान देने वाली एग्रीकल्चर सेक्टर के साथ सर्विस सेक्टर और उद्योगों ने भी अहम भूमिका निभाई है। पिछले 24 सालों के आंकड़े देखें तो मप्र की जीएसडीपी 7.37 लाख करोड़ रु से बढक़र 13.87 लाख करोड़ तक जा पहुंची है, जो लगभग दोगुना है। प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था को हमेशा मजबूती दी है। छोटे से लेकर मध्यम और बड़े स्तर के उद्योगों ने यहां जीएसडीपी में अहम योगदान दिया है। उत्पादन और सेवा के क्षेत्र में सबसे आगे रहने वाले इंदौर शहर ने ऑटोमोबाइल से लेकर फार्मास्युटिकल तक, सॉफ्टवेयर से लेकर रिटेल तक और कपड़ा व्यापार से लेकर रियल एस्टेट तक हर क्षेत्र में अपना दमखम दिखाया। राजा भोज की नगरी और प्रदेश की राजधानी भोपाल में भले ही भोपाल गैस त्रास्दी से इकोनॉमिक ग्रोथ धीमी पड़ी हो पर प्रदेश के इस दूसरे सबसे बड़े शहर ने अब रफ्तार पकडऩी शुरू कर दी है। भोपाल मुख्य रूप से अपनी इंडस्ट्रीज के जरिए अर्थव्यवस्था में योगदान देता है। यहां बिजली के उपकरण, केमिकल, टेक्सटाइल आदि का प्रमुख उत्पादन है। इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी भोपाल एक मिसाल बनकर उभरा है। पिछले 10 सालों में भोपाल का विकास देखने लायक है। अपने कृषि उत्पादन के जरिए जबलपुर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है। मां नर्मदा का पावन जल संस्कारधानी और उसके किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। नर्मदा तट पर बसा जबलपुर अपनी उपजाऊ जमीन, शुद्ध पानी और फसलों के लिए जाना जाता है। जिले के आसपास के ज्यादातर गांवों में गेहूं, चावल, ज्वार और बाजरा की बंपर पैदावार होती है। वहीं व्यावसायिक फसलों में तिलहन, दलहन, गन्ना, कपास और औषधीय फसलें भी तैयार होती हैं। फूड क्रॉप प्रोडक्शन के मामले में यहां के कुल क्षेत्र के 71.4 प्रतिशत क्षेत्र में इन फसलों का उत्पादन होता है, जिसमें से खरीफ की फसलें 60 प्रतिशत और रबी की फसलें 40 प्रतिशत होती हैं। 2022 के एमपी बजट एनालिसिस के मुताबिक 2022 में मप्र की कुल आय 1.95 लाख करोड़ रही है। हालांकि, खर्चों के मामले में प्रदेश अपनी आय से काफी ज्यादा आगे हैं। 2022 में प्रदेश का कुल खर्च 2.48 लाख करोड़ रहा। वहीं प्रदेश पर जीडीपी के 33.1 प्रतिशत का कर्ज रहा। इस सबके बावजूद देश के टॉप-10 राज्यों में जगह बना लेना काबिल-ए-तारीफ है।

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