
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। करीब चार दशक के इंतजार के बाद ओंकारेश्वर अभ्यारण्य बनने का रास्ता साफ होता दिख रहा है। इसकी वजह है इससे संबंधित फाइल अब तेजी से दौड़ना शुरू हो गई है। यह अभ्यारण तीन जिलों के वन क्षेत्र को मिलाकर बनाया जाएगा। इसमें खंडवा, देवास और हरदा जिले शामिल हैं। इसका क्षेत्रफल करीब 614 वर्ग किलोमीटर संभावित है। फिलहाल इसका मामला शासन स्तर पर लंबित चल रहा था । इसके पीछे सरकार की मंशा इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध की वजह से वन क्षेत्र डूबने से वन्य प्राणियों को सुरक्षित आवास व संरक्षण देना है। अब जिस तरह से फाइल दौड़ रही है उससे माना जा रहा है कि अगले माह तक इस नए अभ्यारण्य की अधिसूचना जारी हो सकती है। इस अभ्यारण्य के बनने से बाघ, तेंदुआ, सियार, चीतल, भालू जैसे वन्य प्राणियों को बेहतर आवास सुविधा तो मिलेगी ही साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। दरअसल, इन दिनों इंदिरा सागर के बैकवाटर में उभरे 50 से अधिक टापुओं से घिरे अभ्यारण्य के लिए प्रशासन सभी पक्षों से चर्चा व सुझाव लेने की कवायद में जुटा हुआ है। इस मामले में हाल ही में जनप्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में भी अभ्यारण्य को लेकर सहमति बन चुकी है। बैठक में सांसद ज्ञानेश्वर पाटील , पंधाना और मांधाता विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, कलेक्टर, सीसीएफ, डीएफओ आदि मौजूद थे। इस दौरान डीएफओ राकेश कुमार डामोर ने अभ्यारण्य की कार्ययोजना और प्रगति से अवगत करवाया। उन्होंने बताया कि जल्द ही ग्राम सभाओं में इस प्रस्ताव की जानकारी ग्रामीणों को देकर उनकी सभी की आपत्ति और सुझाव लेकर एक प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जाएगा। ओंकारेश्वर अभ्यारण्य के लिए खंडवा जिले का 450 वर्ग किमी, देवास 225 वर्ग किमी तथा कुछ हिस्सा हरदा जिले के वन क्षेत्र का आ रहा है। अभ्यारण्य की जद में कोई भी राजस्व गांव नहीं आ रहा है। भौगोलिक और प्राकृतिक रूप से यह वन क्षेत्र बाघों के लिए सुरक्षित पनाहगाह भी साबित होगा। यहां एक ओर इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध का बैक वाटर फैला है, दूसरी ओर सतपुड़ा की ऊंची-ऊंची पहाडिय़ां पूरे क्षेत्र को सुरक्षित बनाती हैं।
देरी की यह वजह
अभ्यारण्य का कार्य करीब 39 साल से चल रहा है। एनवीडीए द्वारा आवश्यक अधोसंरचना विकास पर करोड़ों रुपये खर्च किए है। समय-समय पर आपत्तियां और केंद्र सरकार के मापदंड़ों की वजह से अधिसूचना टलती रही। पांच साल पहले अभ्यारण्य को हरी झंडी मिलना लगभग तय हो गया था, लेकिन कालीसिंध लिंक परियोजना की वजह से अधिसूचना टल गई है। बताया जाता है कि इस परियोजना की पाइप लाइन बिछाने का कार्य अभ्यारण्य के अंदर से होना था, इसलिए राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से मामला अटक गया था।
संरक्षण का प्रस्ताव
देश और प्रदेश की प्रगति के उद्देश्य से बांध बनाकर हजारों हेक्टेयर जंगल को डुबाने वाले शासन-प्रशासन को वन्य जीवों की कितनी चिंता है, यह ओंकारेश्वर अभ्यारण्य की सुस्त रफ्तार से स्वत: ही स्पष्ट है, जबकि इस अभ्यारण्य को वन्य प्राणियों को संरक्षण देने के लिए प्रस्तावित किया गया था। नर्मदा नदी पर बने इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर सागर बांध के कारण खंडवा देवास और हरदा जिले का 40332 हेक्टेयर सघन वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था। इसमें बेशकीमती पेड़ों के अलावा कई प्रकार के शाकाहारी और मांसाहारी प्राणी थे। बांध बनने के बाद इन वन्य प्राणियों को संरक्षित करने के लिए ओंकारेश्वर अभ्यारण्य प्रस्तावित था। इसकी जिम्मेदारी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) को दी गई थी। दिसंबर 1987 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की निगरानी में कमेटी गठित की थी। सेंचुरी बनाने के लिए आवश्यक तैयारी और प्लान के अनुरूप निर्देश तय किए गए थे। इसके चलते अभ्यारण्य क्षेत्र में अधोसंरचनात्मक विकास के कार्य हुए। इनमें संचालन कार्यालय भवन, वनपाल, वनरक्षक आवास के अलावा सात वाच टावर बन चुके हैं।
यह वन्य जीव है इलाके में
इस वन क्षेत्र में टाइगर, तेंदुआ, लकड़बग्घा, भालू सियार जैसे अनेक शाकाहारी, मांसाहारी और विभिन्न प्रजाति के पक्षी निवास करते हैं। ओंकारेश्वर अभ्यारण्य का नोटिफिकेशन होने के साथ ही यहां दो अभ्यारण्य के बीच एक कॉरिडोर बन जाएगा। दरअसल, देवास जिले की नेशनल सेंचुरी सीधे ओंकारेश्वर सेंचुरी से जुड़ेगी और इनके बीच कॉरिडोर बनेगा.।खिवनी में टाइगर भी हैं। इससे भालू, तेंदुआ, हिरण सहित अन्य वन्य प्राणियों का मूवमेंट बढ़ेगा।