
- संजीव परसाई
अयोध्या 22 जनवरी, पुस्तक रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और मंदिर निर्माण की जानकारियों को समाहित करके लाया गया संभवत: देश का प्रथम दस्तावेज है। ये सच है कि राम मंदिर का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जरूरत से ज्यादा कवरेज किया। लेकिन इस कवरेज में अधिकतर, जरूरत का था ही नहीं। यह पुस्तक राम मंदिर और 22 जनवरी की ऐतिहासिक घटना का विस्तारपूर्वक विवरण आपको देती है।
इसमें दर्ज घटनाएं, जानकारियां, विवरण, उनकी पृष्ठभूमि पढ़ते -पढ़ते आप रोमांचित भी होते हैं और यदा कदा आश्चर्यचकित भी।
पुस्तक को चार भागों उल्लास, विकास, इतिहास और दृष्टि पर्व नामक चार अध्यायों में विभाजित किया गया है, जो आपके विचारों को तारतम्य देते हैं। उल्लास पर्व में अधिकतर सामग्री प्राण प्रतिष्ठा उत्सव से जुड़ी हैं, विकास में मंदिर और अयोध्या में आए बदलावों को शामिल किया गया है। इतिहास पर्व में ऐतिहासिक घटनाओं, दस्तावेजों का चित्रण साथ ही इस आयोजन पर भी प्रकाश डाला गया है। दृष्टि पर्व में विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा इस आयोजन के बारे में की गई टिप्पणियों को समावेश है।
लेखक संजीव शर्मा एक संयमित और जिम्मेदार लेखक हैं, ये उनकी इस वर्ष ही दूसरी कृति है। वे अतिरेक से बचते हुए अपने सम्पूर्ण लेखन को प्रामाणिक बनाए रखने में सफल रहे। सुघड़ भाषा, शब्द, विन्यास पढ़ते हुए आने वाले दबाव को संतुलित करते हैं। कुल मिलाकर एक बेहतरीन श्रेणी की पुस्तक है। यह पुस्तक उनके लिए भी है, को इस आयोजन उस दौरान नहीं देख सके और वे भी जो अगले एक दो सालों में अयोध्या जाने वाले हैं। इस पुस्तक को पढऩे के बाद आप आयोजन और नई अयोध्या को एक दूसरे व्यापक नजरिए से भी देख सकेंगे।
इसके प्रकाशक लोक प्रकाशन भोपाल हैं। जिन्होंने विषय को गरिमामय अंदाज से ही प्रस्तुत किया। कागज, प्रिंटिंग, कवर, फॉन्ट, लेआउट सभी कुछ शानदार है। इसके प्रमुख  मनोज कुमार अपनी हर पुस्तक के हर पक्ष को पूरा समय देते हैं। जिससे चीजें और भी बेहतर होती हैं।
आत्मगौरव में आकंठ डूबे तथाकथित बड़े प्रकाशकों के बीच वे नवोदित लेखकों के लिए सहारा बनकर उभर रहे हैं। भगवान उनको और सक्षम बनाएं।

 
											 
											 
											