राजधानी में तेजी से बढ़ रहा है प्रदूषण, मौसम पर भी पड़ रहा है प्रतिकूल प्रभाव
भोपाल<बिच्छू डॉट कॉम। एक तरफ सरकार पर्यावरण बचाने के लिए तमाम तरह के कार्यक्रमों की घोषणा करती है, तो दूसरी तरफ उसके ही महकमे पर्यावरण रोकने में सर्वाधिक कारगर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करवा रहे हैं। पेड़ों का यह कत्लेआम विकास के नाम पर किया जा रहा है। हालत यह है कि बीते सात सालों में ही तीस हजार पेड़ों का कत्ल कर दिया गया है। इन पेड़ों के एवज में अगर थोड़ा बहुत पेड़ लगाए भी गए हैं तो वो भी इस प्रजाति के जिससे पर्यावरण का कोई फायदा नहीं होता है। यह पूरा खेल अधोसंरचना विकास के नाम पर किया जा रहा है। इससे आमजन को फायदा कम बल्कि अतिक्रमणकारियों को फायदा अधिक हो रहा है। हालत यह है कि राजधानी में ही बीते एक दशक में हराभरा क्षेत्र एक तिहाई कम हो चुका है। इसका असर शहर के पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। हालत यह है कि पेड़ों की संख्या तेजी से कम होने की वजह से सडक़ों में धूल और जलाशयों में प्रदूषण तो बए़ ही रहा है साथ ही मौसम भी प्रभावित हो रहा है। इसका बुरा असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है, लेकिन शहर में विकास के लिए जिम्मेदार एजेंसियों के अधिकारी हरियाली को संरक्षण देने की बजाय इसे कम करने में कोई कसर नहीं छोड रहे हैं। पर्यावरणविद सुभाष सी पांडे ने बताया कि हाल ही में किए एक सर्वे में सामने आया है कि बीते 10 सालों में निर्माण कार्यों को लेकर जिस प्रकार पेड़ काटे गए हैं, उससे भोपाल की हरियाली में 30 फीसदी की कमी आई है। चौकानें वाली बात है कि बीते पांच वर्षों में इसमें 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। व्यापक स्तर पर पेड़ों की कटाई वाले नौ स्थानों पर 225 एकड़ हरित क्षेत्र के सफाए के बाद वहां कांक्रीट के जंगल बना दिए गए। इससे गर्मियों के दिनों में शहर में भीषण गर्मी पड़ती है। क्योंकि इसी वजह से यहां औसत तापमान पांच से सात डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। शहर के पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान वर्ष 2014 से 2021 के बीच हुआ है। इसी समय लगभग 80 फीसदी पेड़ काटे गए। जबकि 20 फीसद पेड़ों की कटाई 2009 से 2013 के बीच की गई है।
50 साल पुराने डेढ़ लाख पेड़ काटे
प्रो. राजचंद्रन की वर्ष 2016 की रिपोर्ट में प्रकाशित शोध, गूगल इमेजनरी और अन्य सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से कम हो रहे ग्रीन बेल्ट को समझ सकते हैं। इसके लिए शहर को 15 प्रमुख क्षेत्रों में बांटा गया और तीन सडक़ों (बीआरटीएस होशंगाबाद रोड, कलियासोत डेम की ओर जाने वाली रोड एवं नार्थ टीटी नगर की स्मार्ट रोड) को सैंपल के रूप में लिया गया। इन सडक़ों के पास मौजूद प्रमुख 11 इलाकों के 345 एकड़ क्षेत्र का विश्लेषण करने पर पता चला कि 10 वर्ष में यहां की हरियाली पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है। सिर्फ 11 क्षेत्र में ही 50 साल पुराने 1.55 लाख से अधिक पेड़ काटे गए।
पेड़ों का विस्थापन के दावे भी झूुठे
विकास के नाम पर पेड़ों की बलि दी जा रही है। हालांकि, इन पेड़ों को विस्थापित कर कलियासोत, केरवा व चंदनपुरा आदि जंगलों में लगाने के दावे किए गए, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से इसमें भी सफलता नहीं मिली। इन पेड़ों ने कुछ ही दिनों में दम तोड़ दिया। जबकि अधिकारी पेड़ों के बदले चार गुना तक पौधे लगाने के दावा करते रहे हैं, लेकिन जब ये बड़े होकर पेड़ बनेंगे तब तक तो पर्यावरण का काफी नुकसान हो चुका होगा। शहर की हरियाली धीरे-धीरे उजड़ जाएगी।
पर्यावरण पर भारी पड़ी यह परियोजनाएं
स्मार्ट सिटी के निर्माण में 6000
बीआरटीएस कारिडोर बनाने 3000
विधायक आवास बनाने 1150
सिंगारचोली सडक़ निर्माण और चौड़ीकरण 1800
हबीबगंज स्टेशन निर्माण 150
खटलापुरा से एमवीएम कालेज तक सडक़ चौड़ीकरण 200
मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए 3000
कोलार सिक्स लेन 800