दो सैकड़ा मौतों पर सब की चुप्पी, पीड़ित परेशान

पीड़ित परेशान
  • बिजली कंपनियों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मियों का मामला

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम।  निजी एजेंसियों में कार्यरत आउट सोर्स कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए कोई ठोस नीति न होने से उनका शोषण होना तो आम बात है। ऐसे में अगर किसी कर्मचारी की मौत हो जाती है तो उसके परिजनों को किसी भी प्रकार की कोई राहत तक नहीं दी जाती है, फिर आउट सोर्स कंपनियों की ही लापरवाही क्यों न हो। प्रदेश में आउटसोर्स कंपनियों के हितों के लिए ही सरकार के सभी विभागों में ठेकेदारी प्रथा को लागू किया गया है। इसमें भी सर्वाधिक बुरी हालत प्रदेश की तमाम बिजली कंपनियों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों की है। इन कंपनियों में आउटसोर्स कर्मचारियों की लगातार मौतें हो रही हैं, लेकिन इसके बाद भी हादसे रोकने के लिए काई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। हालत यह है कि आउटसोर्स कर्मचारियों की मौत के बाद न तो उनके परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति दी जाती है और न ही किसी अन्य तरह की आर्थिक सहायता। हद तो यह है कि काम के दौरान घायल हुए कर्मचारियों का इलाज तक नहीं कराया जाता है। प्रदेश में शुरु हुई आउटसोर्स कर्मचारियों की प्रथा के बाद बिजली कंपनियों में अपनी सेवाएं देने वाले अब तक करीब दौ सैकड़ा लोगों की मौत हो चुकी है। प्रदेश में वर्ष 2005 से लेकर अब तक 200 कर्मचारियों की मौत और 250 से अधिक घायल हो चुके हैं। इसकेे बाद भी इस मामले में जिम्मेदार चुप्पी तोडऩे को तैयार नही हैं। अब एक बार फिर से रबी सीजन में बिजली का काम बढ़ गया है, जिसकी जिम्मेदारी इन्हीं आउटसोर्स कर्मचारियों पर हैं, जिन्हें मौत का डर सता रहा है। मध्य, पूर्व व पश्चिम क्षेत्र तीन बिजली वितरण कंपनियों में 10-10 हजार और बाकी की तीन पावर मैनेजमेंट, पावर जनरेटिंग व पावर ट्रांसमिशन कंपनी में 10 हजार से अधिक आउटसोर्स बिजली कर्मचारी कार्यरत है। अगर हाल ही में हुई घटनाओं को देखें ता, बड़वानी के बोरलाय में बाबूलाल मंडलोई की 12 अक्टूबर को, दुपाड़ा सब स्टेशन पर श्यामलाल फुलेरिया की 27 सितंबर को , गुना के बजरंगगढ़ वितरण केंद्र में हुकुम सिंह की 18 सितंबर को मौत हो गई थी , जबकि  बैतूल के आठनेर में रामराव मर्सकोले को 12 अक्टूबर को गांव में काम करते समय करंट लग गया, जिससे वह घायल हो गया था।
कंपनी बदलते ही रिकॉर्ड भी गायब
एमपी यूनाइटेड फोरम फार पावर एम्प्लाइज संयोजक वीकेएस परिहार का कहना है कि बिजली कंपनियां बचने के लिए दूसरी कंपनियों के जरिए आउटसोर्स पर कर्मचारियों को रख रही है। इनका शोषण चरम स्तर पर है, तब भी बिजली कंपनी व ऊर्जा विभाग के अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं। लगातार मौतें हो रही है, घायलों की संख्या बढ़ी है। निजी कंपनी बदलते ही मृतकों व घायलों का रिकॉर्ड भी गायब किया जा रहा है।
लापरवाही से जा रही जान
बिजली कंपनियों में पूरा भार आउटसोर्स कर्मचारियों पर है, इसलिए खतरे वाले काम भी इन्हीं से कराए जाते हैं, जो कि गलत है। इन कर्मचारियों को काम के हिसाब से प्रशिक्षित भी नहीं किया जाता है। यही नहीं काम के दौरान जरुरी सुरक्षा उपकरण भी नहीं दिए जाते हैं। जिसकी वजह से इनकी जान चल जाती है। मप्र आउटसोर्स बिजली आउटसोर्स कर्मचारी संगठन के संयोजक मनोज भार्गव का कहना है कि जो काम नियमित कर्मचारियों से कराने होते हैं वे आउटसोर्स कर्मियों से कराए जा रहे हैं। 

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