टिकट की चाह ने भाजपा-कांग्रेस में बढ़ाया असंतोष

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा और कांग्रेस में टिकट की चाह रखने वाले नेता अपनी ही पार्टी के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे हैं। भाजपा ने चार सूचियों के माध्यम से 136 और कांग्रेस ने पहली ही सूची में 144 प्रत्याशियों की घोषणा किया है। लेकिन दोनों पार्टियों में अधिकांश सीटों पर बगावत और असंतोष सामने आने लगा है। हालांकि पार्टियां डैमेज कंट्रोल में जुट गई हैं, लेकिन जिन सीटों पर प्रत्याशियों का विरोध हो रहा है वहां भितरघात का डर सताने लगा है।
गौरतलब है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप के बाद असंतुष्ट नेता ऊपरी तौर पर तो मान जाते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर वे घात कर देते हैं। इसलिए टिकट वितरण के बाद भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को भितरघात का डर सताने लगा है। भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों में इस तरह के हालात तब हैं, जब दोनों दलों ने जीतने वाले उम्मीदवारों का सर्वे कराया है। सर्वे में अपनी पार्टी नहीं, दूसरी पार्टी के संभावित उम्मीदवारों की भी खोजबीन की गई है। उम्मीदवारों की स्थिति का पूरा आकलन किया गया है। रिपोर्ट में उसका जिक्र भी है। बहरहाल, जिस तरह के हालात बने हैं और उसकी वजह से टिकट वितरण में दोनों दलों की तरफ से जानबूझ कर देरी की जा रही है, उससे साफ हो गया कि दोनों दलों के सर्वे का भी ज्यादा मतलब निकल नहीं रहा है।
बगावत का दौर तेज
भाजपा और कांग्रेस में बगावत का दौर तेज हो गया है। कई जिलों में नेता टिकट वितरण को अनीतिपूर्ण और गलत बताते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कई नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा भी दे दिया है। दोनों पार्टियों में फैली असंतोष की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। वहीं कांटे की इस टक्कर में दोनों प्रमुख दल अपनों को खोना नहीं चाहते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ भली-भांति जानते हैं कि सभी दावेदारों को टिकट दे पाना संभव नहीं है। इसलिए उनकी पेशानी पर बल पडऩा स्वाभाविक है। चूंकि इस बार का चुनाव बिना किसी लहर के हो रहा है, इसलिए भी दोनों दलों को खासा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि वह तकरीबन बीस साल से सत्ता में है। इतने सालों में भाजपा में वंशवाद तेजी से फला-फूला है। कई ऐसी सीटें हैं, जहां पर वंशवाद की वजह से टिकट घोषित नहीं हो पा रहे हैं। ऐसा इसलिए कि नेता अपने पुत्रों को टिकट दिलाना चाहते हैं। उनके मन का नहीं होने पर यानी दूसरे उम्मीदवार को टिकट देने पर वे भितरघात करेंगे। दूसरा बड़ा कारण यह है कि बीस सालों में बहुत सारी सीटों पर कई-कई उम्मीदवार तैयार हो गए हैं। सबको टिकट देना संभव नहीं है। चूंकि वे अभी नहीं, तो कभी नहीं के फार्मूले पर काम कर रहे हैं, इसलिए उनसे पार्टी को अंदर से खतरा है। तीसरा बड़ा कारण 30 से 40 भाजपा विधायकों के टिकट पर लटक रही तलवार है। उनमें तकरीबन आधा दर्जन मंत्री भी हैं। इतनी बड़ी संख्या में टिकट काटना किसी भी दल के लिए आसान नहीं होता है। जिन विधायकों का टिकट काटा जाएगा, वे आसानी से मानने वाले नहीं हैं।
कांग्रेस ने दूसरों पर जताया विश्वास
आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी ने कई जगह भाजपा, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और दूसरी पार्टियों से आए प्रत्याशियों पर भरोसा जताकर टिकट दिया है। इसके विरोध में कई जगह पुतले जलाए गए और कई दिग्गज नेताओं ने पार्टी से इस्तीफे दे दिया। नागौद के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक यादवेंद्र सिंह ने कमलनाथ पर टिकट में करप्शन का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया और बसपा में शामिल हो गए। वहीं, कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष अजय यादव ने ओबीसी की उपेक्षा का आरोप लगाकर इस्तीफा दे दिया। वहीं, सागर के नरयावली में कांग्रेस के विरोध में जुलूस निकाला गया और पुतला भी फूंका गया। यहां से शारदा खटीक ने कांग्रेस पर संगीन आरोप लगाते हुए अपने इस्तीफा दे दिया। धार जिले की धरमपुरी से टिकट मांग रहे पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी और ग्वालियर ग्रामीण से टिकट के दावेदार केदार कंसाना ने पहली सूची में अपना नाम नहीं होने पर इस्तीफा दे दिया है। इसके अलावा इंदौर, उज्जैन, सागर सहित कई जिलों में कांग्रेस प्रत्याशियों ने टिकट वितरण का विरोध किया और इस्तीफे दिए।