
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के 230 विधान सभा क्षेत्रों में पहला निर्वाचन क्षेत्र है-श्योपुर। चुनाव आयोग की सूची में यह विधान सभा क्षेत्र क्रमांक-1 के तौर पर दर्ज है। यहां कि जनता चाहती है कि उनका इलाका विकास में भी नंबर-1 बने। श्योपुर में सहरिया आदिवासी बहुलता में हैं और लेकिन प्रत्याशी के भाग्य का फैसला मीणा मतदाता करते हैं। इस विधान सभा क्षेत्र के माथे पर कुपोषण का कलंक लगा हुआ है। श्योपुर में मीणा मतदाता बहुत हैं। उनके वोट निर्णायक होते हैं। यहां पार्टी नहीं बल्कि कैंडिडेट देखकर वोटिंग होती है। यही वजह है कि हर बार विधायक बदल जाता है। अब तक कोई भी प्रत्याशी दूसरी बार नहीं चुना गया। श्योपुर विधानसभा चुनाव में विकास ही चुनावी मुद्दा बनेगा। भाजपा जहां विकास के नाम पर चुनाव लड़ेगी, वहीं कांग्रेस इसी विकास में भ्रष्टाचार होने को मुद्दा बनाने को तैयार है। कूनो में चीता प्रोजेक्ट शुरू करने को भाजपा अपनी उपलब्धि बताकर वोट मांगेगी, वहीं कांग्रेस चीता प्रोजेक्ट को एशियाटिक सिंह परियोजना को बंद करने का आरोप लगाएगी। भाजपा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के माध्यम से मिली मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, ब्रॉडगेज योजना, 35 गांव से नहर निकासी जैसी योजनाओं पर वोट मांगेगी, वहीं कांग्रेस का इन योजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोप लगाना तय माना जा रहा है। मेडिकल कॉलेज के लिए रोड निकालने, 35 गांव में नहर निकासी में भ्रष्टाचार के आरोप कांग्रेस अभी से लगाने लगी है। यहां पर फिलहाल कांग्रेस के बाबू जंडेल कांग्रेस से विधायक हैं। उनका टिकट अभी से तय ही माना जा रहा है। वे इलाके में चुनावी तैयारी के तहत सक्रिय भी बने हुए हैें।
आंकड़ों की बात करें तो 2018 से पहले हुए 4 विधानसभा चुनाव में बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा चुनाव जीती है। कांग्रेस की ओर से बृजराज सिंह चौहान 2 बार भाजपा के दुर्गालाल विजय को चुनाव हराकर विधायक निर्वाचित हुए, उनकी जीत की वजह उनकी जाति है। वे पहले एक बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते और बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। इसी तरह भाजपा के दुर्गालाल विजय कांग्रेस के ब्रजराज सिंह को दो बार चुनाव हराकर विधायक बने। इस बार बृजराज सिंह भाजपा में शामिल होकर टिकट मांग रहे हैं। उधर, भाजपा के दुर्गालाल विजय जो दो बार कांग्रेस के ब्रजराज सिंह चौहान को चुनाव हराकर विधायक निर्वाचित हुए। इस बार उनका मुकाबला टिकट के लिए ब्रजराज सिंह से ही होता दिख रहा है। फिलहाल सभी की नजरें भाजपा के टिकट पर लगी हुई हैं।
40 साल बाद बना मीणा समाज का विधायक
श्योपुर विधानसभा में शुरुआत से ही मीणा समाज ताकतवार रहा। श्योपुर विधानसभा में दो लाख से अधिक वोट हैं। इसमें से 25 फीसदी से अधिक यानी 55 हजार वोट मीणा समाज के हैं। बावजूद इसके 38 साल से यहां मीणा समाज का कोई भी विस का उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया। आखिरी बार इस समाज से 1980 में बुजुर्ग कांग्रेसी नेता बद्रीप्रसाद रावत चुनाव जीते थे। लेकिन यह वर्ष 1990 का चुनाव हार गए थे। इसके बाद मीणा समाज ने कई कद्दावर नेताओं को चुनाव लड़ाया लेकिन, जीत किसी को नहीं मिली। इस समाज के कद्दावर नेता मूलचंद्र रावत भी मैदान में उतरे लेकिन वे भी चुनाव नहीं जीत सके। श्योपुर विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 24 हजार 52 मतदाता हैं। इस बार यहां की मतदाता सूची में सबसे ज्यादा युवा मतदाता जुड़े हैं। इस बार कुल 5 हजार 484 नये युवा मतदाता जुड़़े हैं। ये कुल मतदाताओं का 2.45 फीसदी है। इनमें 18 से 19 साल के पुरुष मतदाता 3 हजार 246 और महिला मतदाता 2 हजार 238 हैं।
सीट पर दावेदार
इस विधानसभा सीट पर भाजपा में टिकट के दावेदार आधा दर्जन से ज्यादा हैं। लेकिन सबसे ज्यादा मजबूत दावेदारी दो बार श्योपुर के विधायक रह चुके दुर्गालाल विजय और कांग्रेस से भाजपा में आए, दो बार के विधायक बृजराज सिंह चौहान की दिख रही है। इनके अलावा महावीर सिंह सिसोदिया, डॉ. गोपाल आचार्य, रामलखन नापाखेड़ली, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष कविता मीणा, भाजपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र जाट, कैलाश नारायण गुप्ता, रामलखन मीणा भी दावेदारी कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस में प्रत्याशी बनने की दौड़ में सबसे आगे विधायक बाबू जंडेल और कांग्रेस जिलाध्यक्ष अतुल चौहान हैं। जंडेल को इसलिए भरोसा है, क्योंकि उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के दुर्गालाल विजय को 48 हजार मतों के बड़े अंतर से हराया है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष अतुल चौहान इसलिए टिकट की उम्मीद जता रहे है कि 2018 में लगभग मिल चुके टिकट को लास्ट में कटने के बाद भी उन्होंने पूरे 5 साल पार्टी की पूरी निष्ठा के साथ सेवा की है। इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस सचिव रामलखन हिरनीखेडा, कुंज बिहारी सर्राफ, दुर्गेश नंदिनी, वीपी सिंह रावत भी टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं।
मीणा वोटर करते हैं उलटफेर
श्योपुर जिले की श्योपुर और विजयपुर विधानसभा सीटों पर जिस जाति का दबदबा है, उसी जाति का उम्मीदवार को यहां से कम ही जीत मिली है। ऐसा भी नहीं है कि भाजपा और कांग्रेस ने यहां से दबदबे वाली जातियों के उम्मीदवारों का मौका नहीं दिया। भरपूर मौका देने के बाद भी ऐसे उम्मीदवारों के खाते में जीत नहीं आ सकी। विजयपुर विस सीट पर आदिवासी समाज के करीब 65 हजार वोट हैं। लेकिन फिर भी लगातार दो बार से भाजपा के आदिवासी उम्मीदवार को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। कुछ ऐसा ही हाल श्योपुर विस सीट पर है, यहां भी मीणा समाज का दबदबा है। लेकिन पिछले 38 साल से मीणा समाज का उम्मीदवार चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर सका।