
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। राजगढ़ विधानसभा सीट मप्र की सबसे चर्चित सीटों में से एक है। यह क्षेत्र संघ के गढ़ के रूप में जाना जाता है, लेकिन भाजपा के नेताओं की गुटबाजी भारी पड़ रही है। भाजपा की गुटबाजी का ही परिणाम है कि 2018 में कांग्रेस को यहां जीत मिली थी। बापूसिंह तंवर ने पूर्व विधायक अमर सिंह यादव को 30 हजार के बड़े मार्जिन मात दी थी। लोगों का कहना है कि भाजपा से टिकट के दावेदार रहे हरिचरण तिवारी के भाई रमाकांत तिवारी ने सोंधिया समाज के उम्मीदवार प्रताप सिंह मंडलोई के चुनाव अभियान को संभाला। प्रतापसिंह 33 हजार वोट ले गए। लोगों का कहना है कि अगर प्रताप मंडलोई चुनाव नहीं लड़ते तो राजगढ़ का नतीजा शायद और होता।
राजगढ़ सीट पर भाजपा का मजबूत आधार है, क्योंकि यहां लंबे समय से हिन्दू संगठनों ने काम किया है। 2013 के चुनाव में भाजपा के अमर सिंह यादव 50 हजार मतों से जीते थे। उन्हें कुल 1 लाख 52 हजार वोटों में से 97 हजार मत मिले थे, लेकिन 2018 में सोंधिया उम्मीदवार प्रताप सिंह के लडऩे के बावजूद 45 हजार से ज्यादा वोट मिले। लोकसभा में पार्टी के उम्मीदवार रोडमल नागर दोनों बार बड़े अंतर से जीते हैं।
सियासी समीकरण
राजगढ़ जिला अनेक मायनों में विशेष महत्व रखता है। विशेष रूप से राजनीति के क्षेत्र में इस जिले के साथ बड़ी-बड़ी हस्तियों के रिश्ते रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कभी इसी जिले से सांसद रहे। भाजपा के दिग्गज नेता प्यारेलाल खंडेलवाल भी यहां किस्मत आजमा चुके हैं। महाभारत में श्रीकृष्ण का अभिनय करने वाले नीतीश भारद्वाज ने भी यहां लोकसभा के लिए भाजपा के टिकट पर ताल ठोकी थी। राघौगढ़, नरसिंहगढ़, खिलचीपुर जैसी रियासतों से मिलकर यह संसदीय क्षेत्र बना है। जिला मुख्यालय राजगढ़ एक छोटा सा कस्बा है, लेकिन जिले का विस्तार काफी लंबा है। राजगढ़ विधानसभा का क्षेत्र राजस्थान के झालावाड़ लोकसभा की सीमा से सटा है। राजगढ़ में एक नगर पालिका राजगढ़, एक नगर पंचायत खुजनेर के कस्बे शामिल हैं। जनपद पंचायत राजगढ़ की 101 ग्राम पंचायत भी राजगढ़ में शामिल हैं। प्रसिद्ध मोहनपुर सिंचाई परियोजना इसी विधानसभा में है। सोंधिया और तंवर बिरादरी के प्रभाव वाली इस विधानसभा में सीधी लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होती है। आगामी चुनाव की बिसात अभी से यहां बिछ चुकी है।
भाजपा के लिए चुनौती आसान नहीं
मौजूदा कांग्रेस विधायक बापूसिंह तंवर हैं। पिछले चुनाव में उन्हें भाजपा की गुटबाजी और अंतर्कलह का फायदा मिला। क्षेत्र में लोकप्रिय हैं, लेकिन वे जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे है। जिसके चलते उनके विरुद्ध स्वाभाविक नाराजगी भी है। तंवर समाज में भी एक वर्ग विधायक से नाराज दिखाई देता है। 2023 में राजगढ़ सीट पर भाजपा के लिए चुनौती बिल्कुल भी आसान नहीं है और तथ्य यह है कि आज भाजपा के अंतर्विरोध के कारण कांग्रेस यहां मजबूत दिखाई दे रही है। भाजपा की समस्या यहां अमर सिंह यादव और हरिचरण तिवारी की आपसी राजनीतिक रंजिश है। 2023 में दोनों से किसी को टिकट दी जाती है तो एक दूसरे को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, यह आज के मैदानी हालातों से स्पष्ट है। यह सीट भाजपा जीत सकती है, क्योंकि यहां पार्टी और अनुषांगिक संगठनों का आधार बहुत मजबूत है। स्थानीय जानकारों का कहना है कि भाजपा को यहां सोंधिया समाज से ही किसी ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना चाहिए, जो बिल्कुल नया हो, क्योंकि कैडर नए चेहरे के लिए आसानी से काम करने की स्थिति में होगा।
जातिगत समीकरण
इस सीट पर सोंधिया और तंवर दो बड़ी आबादी वाली जातियां हैं और दोनों में कोई राजनीतिक सामज्य नहीं है। तंवर जाति के उम्मीदवार के विरुद्ध भाजपा का नॉन सोंधिया उम्मीदवार न केवल जीतता रहा है, बल्कि सभी वर्गों के वोट भी लेता रहा है। हरिचरण तिवारी, अमरसिंह यादव इसके उदाहरण हैं। लोकसभा में रोडमल नागर किरार समाज से आते हैं, लेकिन वह बड़े मार्जिन से जीत रहे हैं। इनके अलावा सेन स्वर्णकार, प्रजापति, वंशकार, भोई, कलार, कायस्थ, राजस्थानी भील, कुशवाहा, वाल्मीकि, खटीक, कोली जैसी जातियों के मतदाता भी राजगढ़ विधानसभा क्षेत्र में निवासरत हैं। सौंधिया समाज इस जिले में सर्वाधिक संख्या वाला ओबीसी वर्ग है। इस समाज का वोटिंग पैटर्न बताता है कि विधानसभा में वोटिंग जाति के उम्मीदवार को ध्यान में रखकर ज्यादा होती है, वहीं लोकसभा का मतदान इस समाज में हिंदुत्व के आधार पर पर ज्यादा होता है। यह ट्रेंड विधानसभा में नजर नहीं आता है। किरार समाज का वोट भाजपा को अधिक मिलता है। इसका कारण मुख्यमंत्री एवं क्षेत्रीय सांसद का किरार जाति से होना भी है। तंवर समाज का वोट अभी कांग्रेस के पक्ष में है, क्योंकि परम्परागत रूप से इस समाज में कांग्रेस की पैठ रही है। तंवर जाति के विधायक भी अभी कांग्रेस से है, इसलिए इस जाति का वोट अभी कांग्रेस के साथ अधिक जुड़ा हुआ है। गुर्जर वोट कांग्रेस के पक्ष में अधिक जाता है। ब्राह्मण समाज का वोट भाजपा और कांग्रेस में विभाजित होता रहा है। यादव जाति के वोट यहां पिछले दो चुनाव से भाजपा के साथ जा रहे हैं। आदिवासी वोट फ्लोटिंग वोटर में माना जाता रहा है। राजगढ़ के मुस्लिम वोट पूरी तरह से कांग्रेस के साथ रहते आए हैं। राजपूत वोट पर अभी भी दिग्विजयसिंह का प्रभाव है। वैश्य वोटर बहुमत में भाजपा के साथ जाता रहा है।