यस एमएलए- जनता मांगेगी विकास के दावों का हिसाब

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। सेवढ़ा विधानसभा अपने भौगोलिक विशालता के चलते विविधिता वाली सीट है। इस विधानसभा का मुख्यालय सेंवढ़ा है तो राजनीति का केंद्र तहसील इंदरगढ़। बीते विधानसभा चुनावों पर गौर किया जाए तो सेवढ़ा नगर एवं समीपस्थ क्षेत्र में कांग्रेस का मत प्रतिशत लगातार दो चुनाव में भाजपा से अधिक रहा। जबकि इंदरगढ़ से लगे इलाकों में भाजपा की जीत ने उसे अंतिम परिणाम में सफलता दिलाई। वहीं लोकसभा चुनाव में तो पूरी विधानसभा ही कांग्रेस के मजबूत गढ़ के रुप में उभरी है। इस बार चुनाव के पहले तक मतदाता खुल कर भाजपा-कांग्रेस की सीधी टक्कर का दावा कर रहे थे। पौराणिक मान्यता व धार्मिक महत्व रखने वाले सेवड़ा ने फिर एक बार विकास की ओर देखा। अपने भीतर पर्यटन व औद्योगिक क्षमताएं रखने वाले सेवड़ा को फिर अपनी पहचान प्राप्ति से दूर रहना पड़ा।  दतिया जिले की सेवड़ा विधानसभा सीट वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई । पहले यह सीट भिंड जिले में थी , लेकिन अब दतिया में शामिल है। इस सीट से कांग्रेस के घनश्याम सिंह विधायक हैं। इससे पहले वे दो बार दतिया से भी विधायक रह चुके हैं। तीसरी बार सेवड़ा से विधायक चुने हैं। घनश्याम सिंह 2023 के चुनाव में इसी सीट से लड़ने का मन बनाए हुए हैं। अनारक्षित वर्ग से होने के कारण अन्य दिग्गज नेता भी सेवड़ा की और चलने का विचार रखते आए हैं। यह सीट 2008 के परिसीमन से पहले भिंड जिले की आरक्षित वर्ग से सीट थी। पूर्व के भिंड जिले का प्रभाव अभी भी सेवड़ा में देखने को मिलता है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सेवड़ा विधानसभा को जीतने का रास्ता लहार से होकर ही जाता है।
युवाओं के लिए रोजगार के अवसर नहीं
क्षेत्र में कोई बड़ी औद्योगिक प्रणाली न होने के कारण, यहां के युवाओं को अपनी जीवनी हेतु या तो कृषि या फिर नौकरी हेतु किसी बड़े शहर का रुख करना पड़ता है। भिंड जिले में मालनपुर औद्योगिक क्षेत्र, या ग्वालियर व दतिया जैसे शहरों में काम काज ढूंढने जाना पड़ता है। यहां की जनता को संसाधनों के अभावों के चलते, अपनी जीवनी व जीवन शैली का स्तर बढ़ाने हेतु एक वास्तविक संघर्ष करना पड़ता है। अपनी बातों को आगे पहुंचाने हेतु, जनता हर पांच वर्षो में एक प्रतिनिधि का चयन करती है। जो अपने लोगों की आवाज बन उनकी ज़रुरत हेतु उचित कार्य कर अपने क्षेत्र को उसकी पहचान व बेहतर मानवीय विकास कर उस समाज को ऊपर उठता है। सेवड़ा की जनता पिछले कई विधानसभा चुनावों से इसी एक आस में अपने प्रतिनिधियों को चुनती आ रही है, मगर आज भी धरातल पर विकास नाम मात्र ही देखा जाता है। पिछली विधानसभा में विजयी घनश्याम सिंह, जो दतिया के राज घराने से आते हैं, के द्वारा काम तो किये गए, मगर उनके द्वारा किये गए कार्यों का मूलभूत लाभ दतिया व दतिया विधानसभा से जुड़े क्षेत्रों को मिलता रहा है। फिर चाहे दतिया में एम्बुलेंस सेवा के अनावरण की बात को या इंदरगढ़ के पुराने पुल के बदलाव हेतु प्रयास। सेवड़ा के लिए किये गए कामों का हिसाब आज यहां की जनता साफ मांग रही है। इसी के चलते आने वाले विधानसभा चुनाव में जनता एक युवा चेहरा देखने की भी बात कर रही है। ताकि सेवड़ा का विकास एक नयी व बेहतर सोच के साथ आने वाले आधुनिक भविष्य के तर्ज पर किया जा सके। इन्ही मुद्दों को नजर रखते हुए आगामी चुनाव में पार्टियों के सेवड़ा के प्रति अपने रवैये व राजनैतिक रणनीतियों को देखना एक विशेष चर्चा का मुद्दा होगा।
सियासी समीकरण
सेवड़ा सीट 2008 तक अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी। इस सीट पर हुए 1951 में पहले चुनाव में कांग्रेस के रामदास ने जीत हासिल की थी। इस सीट पर किसी एक पार्टी का बोलबाला नहीं रहता। यहां की जनता पिछले दो बार से अलग-अलग विधायक को विधानसभा में भेजती आई है। 2008 में जहां बीएसपी के राधेलाल बघेल ने चुनाव जीता था तो वहीं ,2013 में भाजपा के प्रदीप कुमार अग्रवाल को यहां की जनता ने चुना। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के घनश्याम सिंह दूसरे स्थान पर थे। 2013 में जीत हासिल करने वाले प्रदीप कुमार अग्रवाल 2008 के चुनाव में दूसरे स्थान पर थे। अग्रवाल को 2008 में जहां 19521 वोट मिले थे, वहीं 2013 में उन्हें 32423 वोट हासिल हुए थे। 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस से घनश्याम सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के राधेलाल बघेल को हराया था। चुनाव में विकास मुद्दा होना चाहिए। लगातार पिछड़ती जा रही सेंवढ़ा विधानसभा का पूरा चुनाव राजनैतिक दलों के गुणाभाग का शिकार होकर रह गया है।
दतिया, ग्वालियर, ओरछा के बीच खो जाती पहचान
सिंध नदी के किनारे बसा प्राकृतिक व आध्यात्मिक महत्व रखने वाला सेवड़ा, एक सुन्दर धाम है। इस धाम को भारत के मौजूदा सारे धामों का भांजा भी कहा जाता है। सेवड़ा के पास सैलानियों के लिए नौका भ्रमण के साथ साथ पर्यटन हेतु ऐतिहासिक किला व अन्य स्मारक भी हैं। इसके साथ साथ यहां की सांस्कृतिक व सामाजिक बनावट किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए एक अद्भुत अतुल्य अनुभव से कम नहीं है। यहाँ के बाजारों में बड़े उद्योग को स्थापित करने व संचालित करने का पूरा सामथ्र्य भी है। इतनी असीम विकास की संभावनाओं के बावजूद भी आज सेवड़ा को मध्य प्रदेश में अपनी एक पहचान प्राप्त नहीं हुई है। आज भी राज्य के इस चम्बल बुंदेलखंड क्षेत्र में ग्वालियर, दतिया व ओरछा जैसे पर्यटक स्थलों के बीच सेवड़ा अपनी एक पहचान नहीं स्थापित कर पाया है।
विकास के अपने-अपने दावे
विधानसभा क्षेत्र में विकास पर विधायक घनश्याम सिंह का कहना है कि सेवड़ा के मतदाताओं ने 2018 में कांग्रेस को जिताया था, अब सरकार चली गई तो क्या कहें। वैसे देखा जाए तो बहुत कुछ नहीं हुआ है। लेकिन देवी रतनगढ़ बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना का लाभ सेवड़ा के किसानों को भी मिलेगा। नहर ज्यादा होंगी तो किसान खुशहाल रहेंगे। वहीं भाजपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र बुधौलिया का कहना है कि भाजपा का पूरा प्रयास रहेगा कि हमारे खाते में सेंवढ़ा विधानसभा क्षेत्र आ जाए। प्रदेश की भाजपा सरकार ने जनकल्याणकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचाया है। मतदाता समझ गए हैं कि भाजपा का चयन ही सही चयन होगा।

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