
- हिंसक माफिया हावी, सरकार बनी हुई है लापरवाह
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश देश का एक ऐसा राज्य बन चुका है, जहां पर वन भूमि पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण पहले ही कर लिया गया है और इसके बाद भी खुलेआम वन भूमि हड़पने का काम बेरोकटोक जारी है। यही वजह है कि इस मामले में प्रदेश देश में पहले स्थान पर है, जिसकी वजह से प्रदेश की देशभर में जमकर बदनामी हो रही है। हाल ही में वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से यह खुलासा हुआ है। इसमें बताया गया है कि अब तक मप्र में करीब 5,347 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है। जबकि इस मामले में दूसरे नम्बर पर असम और तीसरे नम्बर पर उड़ीसा का नाम है। मध्य प्रदेश में वन विभाग के संरक्षण शाखा की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में प्रति वर्ष साढ़े 7 सौ हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर खेती और आवास बनाने के नाम पर अतिक्रमण हो रहा है। इसके पीछे वन विभाग के अधिकारियों का तर्क है कि जब खुद मुख्यमंत्री अतिक्रमण करने की छूट दे रहे हैं , तो विभाग कैसे रोक सकता है। रिपोर्ट में ये बात भी स्वीकार की गई है कि वन भूमि से अतिक्रमण हटाने में मात्र 20 फीसदी ही सफलता मिल पाती है। इसकी मुख्य वजह वोट बैंक की राजनीति मानी जा रही है। रिपोर्ट में पिछले तीन साल के अतिक्रमण आंकड़ों का हवाला देकर कहा गया है कि 13209 हेक्टेयर में अतिक्रमण हुआ। जबकि, मात्र 1039 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण से मुक्त कराने में वन महकमा सफल हो पाया। प्रदेश में वन भूमि पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। इसे हटाने में प्रति वर्ष करीब 50 वन सुरक्षाकर्मी घायल होते हैं। कुछ घटनाएं ऐसी भी सामने आई हैं जिनमें सुरक्षाकर्मियों को अतिक्रमण मुहिम में जान से हाथ धोना पड़ा है। प्रदेश में करीब दो साल पहले खंडवा जिले के गुड़ी वन परिक्षेत्र के आमाखुजरी में अतिक्रमण हटाने गए रेंजर सहित अन्य वन कर्मी और पुलिस कर्मियों को अतिक्रमणकारियों ने हमला कर घायल कर दिया था। इस मामले में राजनीतिक दबाव के चलते उल्टे वन कर्मियों पर ही सरकार ने प्रकरण दर्ज करा दिया। इसके बाद डीएफओ सहित कई अधिकारियों को सजा के तौर पर स्थानांतरण कर दिया गया। इससे वन विभाग के अधिकारियों को झटका लगा है। जब-जब अधिकारियों ने अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की तब-तब उनका तबादला कर दिया गया है।
इंदौर में कई गुना बढ़ रहा है अतिक्रमण
इस मामले में इंदौर परिक्षेत्र में हाल बेहद बेहाल हैं। वहां पर एक साल 8 गुना अतिक्रमण बढ़ चुका है। इंदौर परिक्षेत्र में 2018 में 28, 2019 में 51 हेक्टेयर 2020 में 166 हेक्टेयर और 2022 में यह घट कर 58 हेक्टेयर रह गया । शिवपुरी में 2019 में 977 हेक्टेयर, 2020 में 451 हेक्टेयर, 2021 में 834 और 2022 में 945 हेक्टेयर वन भूमि पर कब्जा हो गया है। वन मंत्री विजय शाह के इलाके खंडवा सर्किल में 2019 में 760 हेक्टेयर, 2020 में 352 हेक्टेयर, 2021 में 482 और 2022 में 582 हेक्टेयर वन भूमि पर कब्जा हो गया । इसके अलावा अतिक्रमण के मामले में छतरपुर और शहडोल सर्किल में भी अतिक्रमणकारी पीछे नहीं है। इन सर्किलों में वन भूमि पर हर साल करीब 300 से लेकर एक हजार हेक्टेयर तक अतिक्रमण होता है।
वन भूमि पर भारी पड़ता है चुनावी वर्ष
वन विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि चुनावी वर्ष में सर्वाधिक बेजा कब्जा किए जाते हैं। वोटों की खातिर राजनेता अतिक्रमणकारियों को न केवल संरक्षण देते हैं बल्कि, उन्हें बेजा कब्जे के लिए उकसाते भी है। बुरहानपुर की घटनाएं इस बात के ज्वलंत उदाहरण है। खंडवा और बुरहानपुर के जनप्रतिनिधि किसी भी राजनीतिक पार्टियों से संबंध रखते हो किंतु वे वोटों की खातिर वन भूमि पर कब्जा कराने से बाज नहीं आते हैं।
ऐसे करते हैं अतिक्रमण
जंगल माफिया गर्मी के मौसम में पहले पेड़ों की अवैध कटाई करते हैं और बारिश के दौरान उसे खेत के रूप में तब्दील कर देते हैं। वन विभाग के अवैध कटाई की रिपोर्ट को देखा जाए तो पेड़ों की अवैध कटाई के सबसे ज्यादा मामले दिसंबर से मई के बीच दर्ज किए जाते हैं। इसी तरह अतिक्रमण के मामले मानसून सीजन (जून से लेकर सितम्बर) में होते हैं।