
- सरकार की सख्ती के बाद भी अभिभावकों का हो रहा शोषण
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। हर बार नए सत्र में निजी स्कूलों की मनमानी शुरू हो जाती है। आदेश के बाद भी न तो फीस वसूली पर लगाम लग पाई है और न ही निजी प्रकाशक और स्कूल संचालकों के बीच का तिलस्म टूट पाया है। अभी भी सीबीएसई स्कूलों की किताबें कुछ चुनिंदा दुकानें पर ही मिल रही हैं। स्कूल संचालक अभिभावकों के मोबाइल फोन पर मैसेज भेजकर उन्हें निश्चित दुकान से किताब खरीदने का दबाव बना रहे हैं। हर निजी स्कूल संचालक ने अपनी स्टेशनरी की दुकानें फिक्स कर रखी हैं। एनसीईआरटी की किताबों के बजाय निजी प्रकाशकों की किताबें चलाई जा रही हैं। प्राइवेट पब्लिशर्स की पुस्तकें एनसीईआरटी की किताबों के मुकाबले 10 गुना तक महंगी हैं। प्राइवेट स्कूल की नर्सरी की किताबों का सेट 2000 रुपए, पांचवीं का पूरा सेट 4 हजार 525 रुपए एवं कक्षा आठवीं की किताबों का सेट 6 से 7 हजार रुपए में आ रहा है। इस तरह किताबों की कीमत कक्षावार बढ़ती जाती है, जबकि एनसीईआरटी की आठवीं तक की पुस्तकें बाजार में अधिकतम 500 रुपए की हैं। इन किताबों में केवल प्रिंटिंग क्वालिटी में अंतर होता है। खास बात यह है कि यह सभी किताबें फिक्स दुकानों पर ही मिल रही हैं।
दुकानों पर स्कूलों के नाम से ही किताबें बिक रही हैं। दुकान पर सिर्फ स्कूल का नाम व कक्षा बतानी होती है। वे किताबों का सेट निकालकर दे देते हैं। इस सेट में कापी-किताब, पेंसिल, रबर, स्क्रैप पेपर, कवर पेपर, कलर पेंसिल आदि का पूरा सेट मिल रहा है। पालक महासंघ के महासचिव प्रबोध पंड्या ने जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर सीबीएसई स्कूलों की सभी कक्षाओं में एनसीईआरटी की किताबें चलाने की मांग की है। साथ ही कई स्कूलों में निजी प्रकाशकों की 10 से 12 किताबें चलाई जा रही हैं। साथ ही चुनींदा दुकानों पर ही किताबें मिल रही हैं।
4-5 पब्लिशर्स का कब्जा…
राजधानी में चार-पांच बुक हाउस संचालकों ने सीबीएसई स्कूलों की कापी-किताबों पर कब्जा कर रखा है। यह बुक हाउस संचालक स्कूलों से मिलीभगत कर महंगे दामों पर कॉपी-किताब बेचते हैं। राजधानी में एक दर्जन से अधिक पब्लिशर्स की किताबें निजी स्कूलों में ज्यादा चलाई जाती हैं। वहीं कुछ सीबीएसई स्कूल प्री-कक्षाओं में विभिन्न पब्लिशर्स की किताबों से मटेरियल लेकर खुद की किताब प्रिंट करवाते हैं। निजी स्कूलों व प्रकाशकों की मिलीभगत व कमीशनखोरी के कारण राजधानी की कुछ चुनींदा दुकानों पर किताबें मिल रही हैं, इसमें छठवीं कक्षा के बाद में सिर्फ नाम मात्र ही एनसीईआरटी की किताबें शामिल हैं। जहां एनसीईआरटी की एक किताब 52-55 रुपये में तो निजी प्रकाशकों की 300-400 रुपये में मिल रही हैं। वहीं सीबीएसई स्कूलों के हर कक्षा के कापी-किताबों का सेट दुकानों पर बनाकर रखा गया है। जहां एनसीईआरटी की किताबें 550 या 900 रुपये तक में आ जाती हैं। वहीं, निजी प्रकाशकों की किताबों के लिए 5500 या छह हजार रुपये देने पड़ रहे हैं। सीबीएसई स्कूलों के अभिभावकों को निजी प्रकाशकों की किताबें दस गुना दामों में खरीदनी पड़ रही हैं। जिला शिक्षा अधिकारी भोपाल का कहना है कि स्कूल अभिभावकों पर निश्चित दुकान से किताबें खरीदने का दबाव नहीं बना सकते।
किताबों का सालाना 60 करोड़ का व्यवसाय
पालक महासंघ का कहना है कि पहली से दसवीं कक्षा तक के सीबीएसई स्कूलों के बच्चों की किताबों का व्यवसाय सलाना 60 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है। पूरे प्रदेश में डेढ़ लाख विद्यार्थी हैं। सीबीएसई की गाइडलाइन के अनुसार सभी कक्षाओं में एनसीईआरटी की किताबें चलाने का प्रविधान है, लेकिन निजी स्कूल अपनी मनमानी कर रहे हैं। ऐसे में स्कूल संचालकों पर कार्रवाई का भी प्रविधान है। स्कूल संचालक नियमों का पालन नहीं करते हैं तो उन पर स्कूल शिक्षा विभाग कार्रवाई कर सकता है। इसमें यह भी उल्लेखनीय है कि संचालकों द्वारा तय दुकानों से किताबों की बिक्री होती है, तो इसकी शिकायत मिलने पर स्कूल की मान्यता भी निरस्त की जा सकती है।