
- सियासी और जातीय समीकरण साधने की कवायद
- रेवडिय़ों की तरह बांटा जा रहा मंत्री’ का दर्जा
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सियासी और जातीय समीकरण साधने के लिए रेवड़ी की तरह दर्जा प्राप्त मंत्री के पद बांटे जाने लगे हैं। सरकार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा 30 मंत्री हैं, लेकिन इससे अलग कैबिनेट मंत्री व राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त 42 लोग हैं। चुनावी समीकरण साधने और अपनों को खुश करने के लिए सरकार ने रेवडिय़ों की तरह मंत्री’ का दर्जा बांट तो दिया है, लेकिन इसके साथ ही सरकार पर आर्थिक बोझ भी बढ़
गया है।
विधि विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदेश में कैबिनेट-राज्य मंत्री देने का कोई नियम ही नहीं। फिर भी सरकारें अपनों को उपकृत करने के लिए मंत्री’ का दर्जा बांटती रहती है। यह जानकार आश्चर्य होगा कि दर्जा देने का सरकार में कोई नियम नहीं है। इसका खुलासा आरटीआई में हुआ है। भोपाल के नितिन सक्सेना ने जानकारी मांगी थी कि कितने लोगों को कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री का दर्जा मिला है। किस नियम, कानून के तहत दर्जा दिया जाता है। इस पर सामान्य प्रशासन विभाग ने जवाब में बताया कि दर्जा प्रदान करने का कोई नियम नहीं है। यानी सरकार कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री का दर्जा देने के लिए आजाद है। इससे सरकारी खजाने पर लगातार बोझ बढ़ रहा है। खर्चे कम करने के लिए समय-समय पर प्रयास भी होते हैं। विकास कार्य न रुकें, इसके लिए सरकार समय-समय पर कर्ज लेती है। लगातार कैबिनेट और राज्य मंत्री का दर्जा देने से भी खजाने पर बोझ बढ़ा है।
अभी तक 42 उपकृत
प्रदेश में सरकार की मंत्रिमंडल का आकार तय है। यानी सदन में विधायकों की संख्या से 15 फीसदी से ज्यादा संख्या का मंत्रिमंडल नहीं हो सकता। कुल 230- विधानसभा सीटें हैं, इसलिए मंत्रिमंडल में 35 से ज्यादा सदस्य नहीं हो सकते। ऐसे में जो मंत्री नहीं बन सकते, उनके लिए कैबिनेट और राज्य मंत्री का दर्जा देकर उपकृत किया जाता है। प्रदेश सरकार में अभी दर्जा प्राप्त कैबिनेट और राज्य मंत्री 42 हैं। हाल ही में सरकार ने चार लोगों को मंत्री दर्जा दिया है। गौरतलब है कि कमलनाथ सरकार के समय आखिरी मौके पर 6 लोगों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया। पांच लोगों को 18 मार्च 2020 को मंत्री दर्जा दिया गया। इनमें महिला आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग और युवा आयोग अध्यक्ष शामिल थे। कुछ ही दिन में सरकार गिर गई। सत्ता परिवर्तन के बाद भी इन आयोगों के अध्यक्षों का विवाद गरमाया रहा। नर्मदा न्यास ट्रस्ट अध्यक्ष कंप्यूटर बाबा को मंत्री का दर्जा दिया गया। नर्मदा परिक्रमा के लिए हेलीकॉप्टर की मांग की, ताकि जल्द से जल्द काम शुरू कर सकें। हालांकि सरकार ने मांग पूरी नहीं की।
ये हैं दर्जा प्राप्त मंत्रियों की सुविधाएं
दर्जा प्राप्त मंत्री संवैधानिक पद नहीं है। आम मंत्रियों की तरह शपथ नहीं लेते। सरकारें लोगों को स्टेटस के हिसाब से पद देती हैं। निगम और परिषद के अध्यक्षों, उपाध्यक्षों, सदस्यों को मंत्री पद का दर्जा दिया जाता है। सुविधाओं के रूप में लग्जरी वाहन के साथ एक हजार किमी का डीजल-पेट्रोल, 15 हजार रुपये मकान किराया, 3000 सत्कार भत्ता व मानदेय के बतौर 13 हजार 500 रुपये दिया जाता है। उन्हें कार्यालय स्टाफ के साथ अपना निजी सहायक रखने की पात्रता भी रहेगी। इसमें इनके निजी अमले में काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों के वेतन-भत्ते शामिल नहीं हैं। दस साल में 146 लोगों को यह दर्जा दिया गया। सेवानिवृत्त प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग मुक्तेष वाष्र्णेय का कहना है कि कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री दर्जा सरकार को उपहार के रूप में नहीं बांटना चाहिए, जहां बहुत जरूरी हो वहीं दर्जा देना चाहिए। इस पर विचार होगा तो सरकार पर पडऩे वाले वित्तीय भार में कमी आएगी। आमतौर पर निगम-मंडल किसी न किसी विभाग के अधीन होते हैं। ऐसे में कई बार विभाग की जिम्मेदारी राज्यमंत्री के पास होती है और निगम- मंडल अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया जाता है। कैबिनेट मंत्री स्तर के व्यक्ति को राज्य मंत्री के आदेश का पालन करने में असहज स्थिति होती है। इस पर विचार करना चाहिए।