
बिजली बेच कर की जा सकती है कमाई, घाटे की जगह होगा मुनाफा
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट काम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है जहां पर बिजली अधिक है, लेकिन उसका उपयोग ही नहीं किया जाता है। इसकी वजह से आय तो हो नही रही है उलटे बिजली कंपनियां घाटा बताकर जरुर उपभोक्ताओं के जेब पर डांका डालने का काम कर रही है, जिसकी वजह से इन कंपनियों की कार्यप्रणाली पर ही गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
दरअसल यह पूरा खेल अफसरों द्वारा अपने हितों के लिए खेला जा रहा है। अगर सरकारी आंकड़ों की माने तो प्रदेश की बिजली कंपनियों के पास 3 हजार करोड़ की सरप्लस बिजली है। इसकी वजह से बिजली कंपनियों को कहीं से भी अतिरिक्त बिजली खरीदने या अतिरिक्त उत्पादन करने की जरूरत नहीं है। बावजूद इसके प्रदेश की बिजली कंपनियों द्वारा 1500 करोड़ रुपए का घाटा बताया जा रहा है। इसी घाटे को बताकर कंपनियां टैरिफ वृद्धि का प्रस्ताव विद्युत विनियामक आयोग को दे चुकी हैं। हद तो यह है कि इस मामले में प्रस्ताव भी स्वीकार कर लिया गया और उस पर सुनवाई भी शुरु कर दी गई है।
इसकी वजह से अब एक बार फिर बिजली के टैरिफ में बढ़ोत्तरी हो सकती है। बिजली कंपनियों के पास सरप्लस बिजली होने के बाद भी कंपनियों घाटे में चल रही हैं। इससे बिजली कंपनियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होने लगे हैं। दरअसल बिजली कंपनियों ने बिजली के दाम बढ़ाने के लिए विद्युत नियामक आयोग के समक्ष जो रिपोर्ट पेश की है, उस पर सवाल खड़े हो गए हैं। एक तरफ बिजली कंपनियों ने नियामक आयोग को प्रस्तुत अपनी राजस्व रिपोर्ट में स्वयं स्वीकारा है कि वर्ष 2023 24 में जो सरप्लस बिजली होगी। उसमें तीन हजार करोड़ की बिजली न तो उपयोग में लाई जा सकेगी न ही बेची जा सकेगी। वहीं दूसरी तरफ बिजली कंपनियों ने अपनी इसी रिपोर्ट में 1500 करोड़ का घाटा बताकर लगभग चार प्रतिशत से बिजली रेट बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है।
3.20 फीसदी बढ़ोत्तरी का दिया है प्रस्ताव
मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने 1537 करोड़ का घाटा बताते हुए बिजली के टैरिफ में 3.20 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव आयोग को दिया है। बिजली कंपनियों द्वारा दायर याचिका में बताया है कि अभी जो टैरिफ है, उससे बिजली कंपनियों की आय 47992 करोड़ रुपए होती है, जबकि बिजली कंपनियों को 49530 करोड़ रुपए के राजस्व की आवश्यकता है। सुनवाई के बाद मार्च-अप्रैल तक बिजली कंपनियों के टैरिफ में बदलाव हो सकता है। गौरतलब है कि पिछले साल जुलाई में बिजली के टैरिफ में बढ़ोत्तरी की गई थी। बिजली कंपनियों की याचिका पर र सुनवाई करते हुए विनियामक आयोग ने प्रति यूनिट 10 पैसे तक बिजली का टैरिफ बढ़ा दिया था। इससे पहले बिजली कंपनियों ने पिछले साल अप्रैल में भी बिजली की दरों में बढ़ोतरी की थी। बिजली की कीमतों में औसतन 2.64 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई थी। इसमें घरेलू बिजली की दरों में 3 से 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।
ऐसे हो सकती थी घाटे की पूर्ति
नागरिक उपभोक्ता मंच से जुड़े और बिजली के जानकार डॉ. पीजी नाज पांडे का कहना है कि बिजली कंपनियों की रिपोर्ट पर नियामक आयोग को स्वयं संज्ञान लेते हुए बिजली कंपनियों को ये निर्देश देना चाहिए कि 1500 करोड़ घाटे की पूर्ति के लिए बिना उपयोग की तीन हजार करोड़ की बिजली न तो अन्य कंपनियों से खरीदें और न ही उसका उत्पादन करें। ऐसा करने से घाटे से बचा जा सकता है। ऐसे में बिजली के रेट बढ़ाने की नौबत ही नहीं आएगी और न ही जनसुनवाई पर लाखों रुपये खर्च करने पड़ेंगे।