जयस तीसरी बड़ी राजनैतिक ताकत बनने के प्रयासों में

जयस
  • अजा व ओबीसी को भी साथ जोड़ने की कोशिशों में लगी
    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के गठन के बाद प्रदेश में अब तक कोई भी तीसरी राजनैतिक ताकत नहीं उभर सकी है, लेकिन अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले जल, जंगल और जमीन और विकास के मुद्दों पर आदिवासी संगठन जयस खुद को प्रदेश में तीसरी ताकत के रुप में सामने लाने की कवायद में पूरी ताकत के साथ जुट गई है।  इसके लिए यह संगठन अपने साथ अजा व ओबीसी को भी साथ जोड़ने की कोशिशों में लगा हुआ है।  हाल ही में जिस तरह से  जयस के संरक्षक और कांग्रेस विधायक डॉ हीरालाल अलावा के साथ प्रदेश के माझी – मछुआरा समाज ने एकजुटता का संकल्प भी जाता चुके हैं। उससे दोनों प्रमुख राजनैतिक संगठन भाजपा व कांग्रेस के रणनीतिकारों के कान खड़े हो गए हैंं।
    यही वजह है कि इन दोनों ही दलों का पूरा फोकस आदिवासी समाज पर बन गया है। निमाड़ के बड़वानी व खरगोन सहित बुंदेलखंड, महाकौशल और विंध्य अंचल में इस समाज की करीब 50 लाख आबादी रहती है। माझी के साथ बंजारा, मानकर, महार, धनगर और नायका समाज के अलावा ओबीसी और अनुसूचित जाति की कुछ जातियों को जयस के बैनर तले लाने की तैयारी की गई है। इसके लिए अगले महीने भोपाल में इन समाजों का सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है। राजधानी के गांधी भवन में माझी आदिवासी महासंघ के सम्मेलन में जयस के साथ गठबंधन का ऐलान किया जा चुका है। इस दौरान यह भी संकल्प जताया गया कि माझी समाज को जनजाति के तहत आरक्षण, रोजगार, तालाब और रेतबाड़ी के पट्टे जैसी समस्याओं को संयुक्त रूप से उठाया जाएगा। भोपाल में दो दिन चले इस सम्मेलन में करीब 2 दर्जन जिलों के पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। वंचित समाज संघर्ष मोर्चे के संयोजक आईएस मौर्य ने समाज की उपजातियों को एकजुट करने रैली और नुक्कड़ सभाओं की तैयारी की है। विधायक अलावा का कहना है कि सामाजिक संगठनों का भाजपा और कांग्रेस दोनों से मोहभंग हो चुका है। इसलिए प्रदेश में तीसरी ताकत के रूप में आदिवासियों के साथ अजा और ओबीसी की जातियों को एकजुट करने का संकल्प लिया गया है। आगामी चुनाव में यह संयुक्त मोर्चा अपनी ताकत दिखाएगा। उन्होंने बताया कि विंध्य के नेता एवं पूर्व सांसद बुद्धसेन पटेल की अध्यक्षता में 10 दिसंबर को अजा, जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग का महासम्मेलन बुलाया गया है। इस आयोजन में विभिन्न समाजों के पदाधिकारी, नेता और समाजसेवी जयस के साथ मिलकर अपनी राजनैतिक लड़ाई को तेज करने का संकल्प भी जताएंगे। डॉ अलावा ने बताया कि इस आयोजन में 42 सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों ने संयुक्त कार्यक्रम की सहमति दी है। मप्र में आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। 23 अन्य सीट पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
    गोडवाना भी दिखा चुकी है असर
    गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का सबसे ज्यादा असर महाकौशल अंचल में है। 2018 के चुनाव में दलों में बंटी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा था और कई सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ दिया था। जीजीपी प्रत्याशियों ने छह लाख 75 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे, अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर तो पार्टी कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर पर थी। कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो गया था. 2018 के चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर 76 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। 2003 के चुनाव में जीजीपी ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 3 सीटें जीती थीं। उसके बाद 2008 के चुनाव में दो टुकड़ों में बंटी पार्टी ने अलग-अलग सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे, जिसके चलते पार्टी का वोट प्रतिशत घट गया था। लेकिन 2018 के चुनाव में जीजीपी ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा और कई सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के वोट कटवा दिए।  कुल 23 फीसदी आदिवासी हैं, जिनमें करीब 7 फीसदी गोंड हैं। शहडोल, अनूपपुर, डिंडौरी, कटनी, बालाघाट, छिंदवाड़ा जैसे जिलों में गोंगपा का प्रभाव है।
    जयस बिगाड़ चुका है भाजपा का खेल
    बीते  विधानसभा चुनाव में जयस ने कांग्रेस का समर्थन कर भाजपा का चुनाव गणित बिगाड़ दिया था। इस समर्थन की वजह से ही कांग्रेस 47 आरक्षित सीटों में से 31 जबकि भाजपा 15 सीटें ही जीत पाई थीं। एक विधानसभा क्षेत्र में निर्दलीय प्रत्याशी विजयी रहा था। अब इन चुनावों में एक साल का समय ही रह गया है। राजनीतिक दलों ने जीत के लिए अपने-अपने दांव चलने शुरू कर दिए हैं। माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले विस चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच ही रहेगा, लेकिन , जिस तरह से आदिवासी युवाओं के इस संगठन ने 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है , उससे दोनों ही दलों की नींद उड़ा रखी है।  वहीं,राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि जयस अंदरुनी तौर पर फिलहाल कांग्रेस और बीजेपी दोनों से सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत की योजना पर भी काम कर रहा हैं। उल्लेखनीय है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा के लिए जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन सिरदर्द बन रहा है। दरअसल, 2003 के विधानसभा चुनाव से मध्य प्रदेश में गोंडवाना पार्टी ने आदिवासियों के वोट बैंक में सेंध लगाई थी। जैसे-तैसे इनका प्रभाव कम हुआ तो मालवांचल में युवाओं के बीच जयस संगठन ने जड़ें जमा लीं।
    शिवराज खेल चुके हैं मास्टर स्ट्रोक  
    उधर, भाजपा ने भी आदिवासियों को अपने पाले में लाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मु की ताजपोशी से लेकर कई ऐसी घोषणाएं की हैं, जिससे भाजपा को उम्मीद है कि आने वाले चुनाव में आदिवासी वर्ग उसका साथ देगा। दरअसल, प्रदेश में आदिवासी वर्ग जिस दल के साथ होता है, वह सत्ता में आता है। प्रदेश में जयस की वजह से बनने वाले नए  समीकरणों के बीच कांग्रेस और जयस नजदीक आ रहे हैं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेसा कानून (संविधान की पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र में स्व-शासन की स्थापना का कानून) का मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। 15 नवंबर से मप्र पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार अधिनियम के नए नियम लागू कर दिए गए हैं।  इसी वोट बैंक को वापस पाने के लिए सरकार 89 आदिवासी विकासखंड में पेसा कानून के नियम लागू करने जा रही है।  इसके लागू होते ही आदिवासी बहुल इलाकों में ग्राम सभा शक्तिशाली हो जाएगी। इसकी अनुमति के बिना शराब दुकान नहीं खुल सकेंगी। खनन के लिए भी ग्राम सभा की अनुमति लेना अनिवार्य होगी। ऐसे कई अन्य प्रविधान हैं, जिसके चलते आदिवासियों को यह कानून शक्ति संपन्न बनाएगा। आदिवासी क्षेत्रों में विकास के मुद्दे पर भाजपा कमजोर न प़ड़े, इसके लिए शिवराज सरकार गरीब कल्याणकारी योजनाओं को आदिवासी क्षेत्रों पर फोकस करते हुए गढ़ रही है।  जैसे, राशन आपके द्वार योजना, जिसमें आदिवासी गांवों तक राशन पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए वाहन भी इसी वर्ग के युवाओं को दिए गए हैं। प्रधानमंत्री आवास, मुफ्त राशन, रोजगार दिवस, घरों तक नल से पानी पहुंचाने सहित कई योजनाओं पर आदिवासी क्षेत्रों में जमकर काम हो रहा है।

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