
- उप्र के दलित नेता चन्द्र शेखर रावण से की मुलाकात
भोपाल/गणेश पाण्डेय/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा से निष्कासित प्रीतम सिंह लोधी उस समय चर्चा में आए थे , जब उनके द्वारा पिछोर विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक केपी सिंह के खिलाफ बतौर भाजपा प्रत्याशी चुनाव लड़ा गया था। इस लोधी बाहुल्य पिछोर सीट पर उनके द्वारा दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ा गया , लेकिन दोनों ही बार उन्हें हार का समना करना पड़ा। खुद चुनाव हारने वाले प्रीतम लोधी प्रदेश में मौजूद करीब 60 लाख सजातीय मतदाताओं के भरोसे अब भाजपा को चुनौति दे रहे हैं। इसकी वजह से ग्वालियर -चंबल अंचल में हड़कंप की स्थिति है।
इसके लिए अब वे उप्र के दलित नेता चन्द्र शेखर रावण से मदद चाहते हैं। यही वजह है की निष्कासन के बाद वे उनसे मुलाकात भी कर चुके हैं। दरअसल लोधी ने हाल ही में ब्राहणों व कथा वाचकों के खिलाफ जिस तरह का बयान दिया था,उसके बाद भाजपा नेताओं को चुनावी चिंता तो सताने ही लगी थी , साथ ही कई बड़े प्रभावशाली संत महत्मा भी विरोध में उतरना शुरू हो गए थे। इस मामले में धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री उर्फ बागेश्वर महराज ने तो खुलकर कह दिया था की अगर उनक समाने प्रीतम लोधी आ जाएं तो वे उसे मसल देंगे। उधर, प्रीतम ने बीजेपी से निष्कासन के बाद खुद को टाइगर बताया है। उनका कहना है की वे विस चुनाव में लोधी बाहुल्य करीब पांच दर्जन सीटों पर भाजपा का कमल नहीं खिलने देंगे। इसकी वजह है शायद लोधी वोट बैंक । 2003 के विधानसभा चुनाव में उमा भारती ने भी इसी वोट बैंक को अपनी सबसे बड़ी ताकत मान लिया था। बाद में जब वे भाजपा से अलग हुईं तो खुद अपने ही सजातीय प्रभाव वाले गढ़ में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, यही नहीं उनके भतीजे को भी ऐसी ही एक अन्य सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा था। उमा भारती की हार भी ऐसे समय हुई थी जब देश में लोधी समाज का उनसे बड़ा सिर्फ एक अन्य चेहरा कल्याण सिंह ही थे। ऐसे में यह तो तय है की प्रीतम लोधी समाज के लिए उमा भारती से बड़ा चेहरा तो हैं नहीं। यही वजह है की अब माना जा रहा है की प्रीतम लोधी का लोधी वोट बैंक की ताकत दिखा कर प्रदेश के कद्दावर लोधी नेताओं के नक्शेकदम पर चलना उनका सियासी स्टंट मात्र है। प्रदेश में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी लोधी समाज भाजपा का बेहद मजबूत वोट बैंक है। यही वजह है की अब प्रीतम का दावा है की प्रदेश की 65 विधानसभा सीटों पर 2023 के चुनाव में बीजेपी को हराने का अभियान चलाया जाएगा। दरसअल प्रीतम लोधी जिस अंचल से आते हैं, उस अंचल में इसी तरह के एक बयान की वजह से भाजपा को बीते आम विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिसकी वजह से भाजपा को सरकार से भी बाहर बैठना पड़ा था। यही वजह है कि इस बार प्रीतम लोधी के बयान से उठे बवाल के पूरे एपीसोड को समाप्त करने में बीजेपी ने वक्त नहीं लगाया। लगा तो था कि बीजेपी लोधी वोट बैंक की फिक्र में सख्त निर्णय लेने में देर कर रही है। लेकिन, 2018 में भोगे हुए जख्मों ने असर दिखाया और पार्टी ने बात बहुत बिगड़ने से पहले संभाल ली। माफी के बाद भी प्रीतम लोधी का बीजेपी से निष्कासन हो गया। लेकिन पार्टी से निकाले जाने के बाद प्रीतम लोधी ऐसे शहीद बनाकर सड़क पर आए कि जैसे लोधी समाज की सहानुभूति का सैलाब उनके साथ उमड़ आएगा।
ये भूलकर कि लोधी वोट बैंक की वाजिब हकदार उमा भारती ने भी इस वोट बैंक के दम पर जनशक्ति पार्टी बनाई थी। नतीजा ये कि 2008 के विधानसभा चुनाव में उमा श्री को टीकमगढ़ में अपने ही घर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। फिर प्रीतम लोधी तो उमा भारती भी नहीं, और उनका कद भी प्रदेश में इस तरह का नहीं है कि पूरे प्रदेश की लोधी वोटर उनके साथ खड़ा दिखाई दे रहा हो। शक्तिप्रदर्शन में सियासी स्टंट में दम दिखाना और बात है और चुनावी ताकत बन पाना बिल्कुल अलग बात है।
लोधी वोट में है कितना दम
अब सवाल ये है कि जिस लोधी वोट बैंक की ताकत पूर्व सीएम उमा भारती से लेकर प्रीतम लोधी तक बीजेपी में दिखाते रहे हैं। उस वोट बैंक की ताकत कितनी है। एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में करीब नौ प्रतिशत के करीब लोधी वोट बैंक है। करीब 65 विधानसभा हैं प्रदेश की जिसमें ज्यादातर बुंदेलखंड इलाके में हैं, जहां इस वोटर के वोट से जीत हार तय होती है। बुंदेलखंड के बाद ग्वालियर चंबल इलाके में ये समाज सियासत तय करने की स्थिति में है। लोकसभा सीटों की बात करें तो 29 में से 13 लोकसभा सीटों पर लोधी वोटर निर्णायक है, जिनमें बालाघाट, सागर, खजुराहो, दमोह, विदिशा, होशंगाबाद प्रमुख हैं। यह बात अलग है की उपचुनाव में पूरा लोधी समाज एकजुट होकर दमोह में भाजपा प्रत्याशी के साथ खड़ा था, फिर भी उसकी जीत तय नहीं कर सका।
