आरटीई के तहत 34 हजार बच्चे निजी स्कूलों में प्रवेश से वंचित

आरटीई

-अभिभावकों का फोकस बड़े शहरों के बड़े स्कूलों पर
-आदिवासी बहुल जिलों में आरटीई में कम एडमिशन

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर प्रवेश के लिए ऑनलाइन लाटरी निकाली गई। इस सत्र के लिए प्रदेश के 26 हजार 666 निजी स्कूलों में दो लाख 78 हजार 130 सीटों के लिए दो लाख 1252 आवेदन आए थे। इनमें एक लाख 73 हजार 725 विद्यार्थी पात्र थे। इसमें से ऑनलाइन लाटरी के माध्यम से एक लाख 39 हजार 725 बच्चों को प्रवेश मिला है, जबकि 34 हजार बच्चे प्रवेश से वंचित हो गए। हैरानी की बात यह है कि आदिवासी बहुल जिलों में आरटीई में कम एडमिशन हुए हैं। अधिकारियों का कहना है कि अभिभावक बड़े स्कूलों का नाम अधिक आवेदन कर देते हैं। आरटीई के तहत हर साल प्रवेशित विद्यार्थियों की संख्या में कमी आ रही है। इसका कारण यह है कि बड़े स्कूल आरटीई के दायरे से बाहर हैं। वहीं छोटे निजी स्कूल पोर्टल पर प्रदर्शित हो रहे हैं। पोर्टल पर बड़े निजी स्कूलों का नाम नहीं होने के कारण अभिभावक अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने से बच रहे हैं।  जानकारी के अनुसार हर साल करीब एक से डेढ़ लाख ही बच्चे आरटीई के तहत प्रवेश ले रहे हैं, जबकि स्कूलों में लगभग ढाई से तीन लाख सीटें आवंटित की जाती है। आनलाइन लाटरी के माध्यम से बच्चों को निजी स्कूलों में सीटें आवंटित की दी गई। अभिभावकों के पंजीकृत मोबाइल पर आवंटित स्कूलों के नाम की सूचना भेज दी गई। पात्र विद्यार्थी स्कूलों में जाकर 23 जुलाई तक प्रवेश ले सकेंगे। पहले चरण में जिन आवेदकों का नाम नहीं आएगा।
वे दूसरे चरण के लाटरी प्रक्रिया में शामिल होंगे। बता दें, कि पिछले वर्ष दो लाख 84 हजार सीटों के लिए एक लाख 99 हजार आवेदन आए थे, जबकि एक लाख 29 हजार प्रवेश हुए थे। बड़े शहरों में भोपाल में 16,260 सीटों के लिए 20,117 आवेदन में से 10,539 को सीटें आवंटित की गई। वहीं इंदौर में 11,687 सीटों में से 6,872 सीटें आवंटित की गई। वहीं जबलपुर में 7,547 सीटों में से 4,006 और ग्वालियर में 9,333 सीटों में से 3,532 सीटें आवंटित की गई।
27 हजार बच्चे हो गए बाहर
इस साल 2 लाख 1 हजार 252 अभिभावकों ने नौनिहालों के लिए ऑनलाइन आवेदन किए थे। इनमें से दस्तावेज सत्यापन के बाद 1 लाख 71 हजार 725 छात्र-छात्राएं पात्र मिले। 1 लाख 39 हजार 725 का एडमिशन हुआ है। दस्तावेज सत्यापन में 27 हजार, 527 बच्चे बाहर हो गए। वहीं पात्र छात्र-छात्राओं में से 34 हजार को अभी भी स्कूल अलॉट नहीं हुए हैं। विशेषज्ञ कहते शासन को आरटीई के सिस्टम को दुरुस्त करना होगा। कोशिश हो कि स्कूलों की इच्छा या स्वीकृति के बजाय शासन के कहने पर आरटीई में बच्चों को प्रवेश मिले। आरटीई राज्य शिक्षा केंद्र के नियंत्रक डॉ. रमाशंकर तिवारी कहते हैं कि कम आवेदन के कारणों का पता लगा रहे हैं। हम चाहते हैं कि सभी जिलों से अभिभावक ज्यादा से ज्यादा संख्या में प्रक्रिया में शामिल हों और योजना का लाभ लें। आंकड़े अपडेट हो रहे हैं, वैसे दूसरे चरण में कुछ और बच्चों को प्रवेश मिलेंगे।
बड़े जिलों के बच्चों को बेहतर प्रतिनिधित्व
राज्य शिक्षा केंद्र ने लॉटरी के बाद 52 जिलों के स्कूलों में प्रवेशित विद्यार्थियों के जो आंकड़े जारी किए हैं, उनके विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ बड़े जिलों के बच्चों को बेहतर प्रतिनिधित्व मिला है, वहीं आंचलिक और जनजातीय आबादी बहुल जिले उपेक्षित हैं। आरटीई के तहत आए कुल आवेदन, दस्तावेज सत्यापन के बाद बचे उम्मीदवार और फिर लॉटरी से हुए प्रवेश में टॉप पांच जिलों में भोपाल, इंदौर, उमरिया, देवास, और सीहोर हैं। अंतिम पायदान वाले यानी ऐसे जिले जिनमें बेहद कम प्रवेश हुए हैं, उनमें पत्रा, शिवपुरी, डिंडौरी, अलीराजपुर और अनूपपुर समेत अन्य शामिल हैं।

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