भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए…बजी ‘खतरे की घंटी’

भाजपा व कांग्रेस

– एक नगर निगम जीतकर आप ने किया जोरदार आगाज, तो हार कर भी झटका दिया ओवैसी ने

भोपाल/हरीश फतेह चंदानी /बिच्छू डॉट कॉम।
मध्यप्रदेश की  राजनीति भले ही दो दलीय है, लेकिन अब यह परिदृश्य बदलता हुआ दिख रहा है। इसका श्रेय आम आदमी पार्टी को जाता दिख रहा है। संगठन के मामले में भाजपा से लेकर कांग्रेस तक से बेहद कमजोर इस दल ने जिस तरह से इस बार निकाय चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है उसकी वजह से भाजपा के लिए तो वहीं मुस्लिमों के नाम पर राजनीति करने वाली असुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने कांग्रेस के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। दरअसल औबेसी की पार्टी भले ही कहीं पर भी जीत दर्ज नहीं कर सकी हो, लेकिन उसने कुछ जगहों पर इतने मत पाए हैं की उसका खामियाजा कांग्रेस को एक महापौर की सीट और कई जगहों पर पार्षद पद तक गंवाना पड़ गए हैं। दरअसल यह दोनों ही दल प्रदेश की राजनीति में अपने बाल्यकाल में है।
इसके बाद भी जिस तरह से इन दोनों ही दलों ने निकाय चुनाव के पहले चरण में अपनी और सभी का ध्यान खींचा है, वह भविष्य की राजनीति की और इशारा जरुर करता है। पहले चरण में जिन निकायों में चुनाव हुए हैं। उनमें शामिल सिंगरौली नगर निगम में आप प्रत्याशी रानी अग्रवाल ने जीत दर्ज की है। उनकी यह जीत पहले से संभावित थी। पार्टी भी यह सीट जीती हुई मानकर चुनावी मैदान में उतरी थी। आप को इस सीट पर 34585 वोट मिले हैं, जबकि भाजपा के चंद्रप्रताप विश्वकर्मा को 25233 वोट मिले हैं। यहां पर कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही है। इस चुनाव में आप ने शुरू से सिंगरौली पर पूरा फोकस किया था।  यही वजह है की पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल भी इस सीट पर प्रचार के लिए आए और उनके द्वारा सभा कर अपने प्रत्याशी के लिए वोट मांगने का काम किया गया। यह वो नगर निगम है जहां पर वर्ष 2018 में हुए आम विधानसभा चुनाव में आप दूसरे नंबर पर रही थी। खास बात यह है की विधानसभा चुनाव में आप ने रानी अग्रवाल को ही उम्मीदवार बनाया था। तब भाजपा के रामलल्लू वैश्य जीते थे। इससे पहले 2015 में वे जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं थीं। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सिक्का उछालने के बाद एक वोट से हार गईं।  इनके परिजन हरवंश अग्रवाल जिला भाजपा में कोषाध्यक्ष रहे। राजनीतिक परिवार से जुड़ी रानी पिछले कई सालों से सक्रिय हैं। इसके साथ ही इस सीट पर आप के पांच पार्षद भी चुने गए हैं। इस हिसाब से देंखें तो प्रदेश की इस कोल नगरी में आप बेहद मजबूत स्थिति में दिखाई देने लगी है। सिंगरौली में आप की एंट्री ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश में विकल्प की गुंजाइश है। राज्य के पहले चरण के नगरीय निकाय के चुनाव में एक महापौर के अलावा डेढ़ दर्जन आप के प्रत्याशी पार्षद पद पर जीते हैं।  इनमें ग्वालियर जिले के डबरा में वार्ड पांच एवं 12, पिछोर में वार्ड एक एवं 10 भितरवार में वार्ड नौ, भिंड जिले के आलमपुर के वार्ड तीन , मुरैना पोरसा के वार्ड नौ , इसी तरह श्योपुर के वार्ड 14,  विजय राघवगढ़ वार्ड पांच, शाजापुर वार्ड 27, ओरछा वार्ड तीन, रीवा नई गढ़ी से एक पार्षद और सिंगरौली में पांच पार्षदों ने जीत दर्ज की है। दरअसल मप्र में नगरीय निकाय चुनाव के जरिए मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी (आप) प्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस का विकल्प बनने की तैयारी कर रही है। राजनीति के जानकारों की माने तो राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से ये नतीजे भले ही कोई बड़ा परिवर्तन नहीं माने जाएं लेकिन प्रदेश की राजनीति के लिए कुछ संकेत 2024 के लिए छुपे हैं।
भाजपा ने की राह आसान
आप की जीत में भाजपा का भी बहुत बड़ा योगदान माना जा रहा है। इसकी वजह है भाजपा द्वारा अपनी पसंद के प्रत्याशी के लिए जातीय समीकरण को पूरी तरह से दरकिनार करना। यही भाजपा को मंहगा पड़ गया है। भाजपा को यहां पर अपना गढ़ होने के बाद भी चुनाव हारना पड़ गया है। दरअसल इस सीट पर सर्वाधिक 37 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। इसके बाद भी भाजपा ने एक अफसर चंद्र प्रताप विश्वकर्मा पर दांव लगाया।  इससे यह बड़ा वर्ग नाराज हो गया था। यह बात अलग है की भाजपा ने ब्राह्मणों को मनाने पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ला को घर-घर दस्तक देने भेजा था, वे समाज की बैठकों में शामिल भी हुए और उन्हें मनाने के प्रयासों में भी लगे रहे। इसके बाद भी उनकी नाराजगी दूर नहीं हुई और मतदान के दिन वे पूरी तरह से आम आदमी पार्टी की तरफ  चले गए। इसकी वजह से आप उम्मीदवार रानी अग्रवाल की राह बेहद आसान हो गई।
टेस्ट में आप सफल
आप निकाय चुनावों को विधानसभा चुनाव के लिए लिटमस टेस्ट मान रही थी । इसमें पार्टी सफल रही है। सिंगरौली महापौर सहित अन्य निकायों में 20 से अधिक पार्षद प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। नगरीय निकाय चुनाव से पार्टी अपनी जमीन तैयार कर रही है। इसके बाद आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव पूरी ताकत से उतरने की तैयारी भी  कर रही है। निकाय चुनाव से पहले भोपाल आए दिल्ली के आप विधायक प्रवीण देशमुख ने कहा था की मध्य प्रदेश में जनता के पास बीजेपी और कांग्रेस दो ही विकल्प थे। दोनों ही पार्टियों ने प्रदेश में भ्रष्टाचार में रिकॉर्ड बनाए हैं। इनसे जनता त्रस्त हो चुकी है। यहां जनता विकल्प की तलाश कर रही है। आम आदमी पार्टी पूरे प्रदेश में तीसरा विकल्प बनकर आई है। उनका कहना था की हमारा इस निकाय चुनाव में जमीनी नेटवर्क तैयार होगा। अब तक मध्यप्रदेश में आप ने किसी भी चुनाव में जीत हासिल नहीं की थी लेकिन नगरीय निकाय में पार्टी के प्रदर्शन ने उम्मीद जगा दी है। ऐसे में अब विधासनभा चुनाव को लेकर भी आम आदमी पार्टी ने रणनीति बनाना शुरू कर दी है।
ओवैसी का तिलिस्म
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने प्रदेश में पहली बार निकाय चुनाव में किस्मत आजमाई। बुरहानपुर में पार्टी के प्रत्याशी को 10 हजार से ज्यादा वोट मिले। इससे भाजपा की राह आसान हो गई। इसमें नोटा का भी अहम रोल रहा। भाजपा की माधुरी पटेल की सिर्फ 542 वोट के अंतर से जीत हुई, जबकि नोटा में 677 वोट पड़े। ऐसे ही जबलपुर में 2 और खंडवा में एक पार्षद एआईएमआईएम का बना । इसके अलावा भोपाल में भी कई सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे हैं। इन सीटों पर कांग्रेस को तीसरे स्थान पर रहना पड़ा है। बुरहानपुर में बीजेपी की जीत की वजह ही ओवैसी की पार्टी रही है। यहां पर बीजेपी की माधुरी पटेल कांग्रेस की शहनाज अंसारी को 588 वोटों हराकर महापौर बनी हैं, कि एक पार्षद ओवैसी की एआईएमआईएम से बना है।

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