बिहाइंड द कर्टन/आखिर काली कमाई से धोना ही पड़ा हाथ

  • प्रणव बजाज
काली कमाई

आखिर काली कमाई से धोना ही पड़ा हाथ
एक समय बेहद पॉवरफुल अफसर रहे विधानसभा के पूर्व अवर सचिव कमलाकांत शर्मा को अपनी काली कमाई से बुढ़ापे में हाथ धोना ही पड़ गया। उनकी की करीब 1.19 करोड़ की संपत्ति प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अटैच कर ली है। यह कार्रवाई फर्जी नियुक्तियों के मामले में दर्ज किए गए प्रकरण में आय से अधिक संपत्ति मानते हुए की गई है। उनकी जो संपत्ति अटैच की गई है उनमें भोपाल व रीवा में शर्मा और उनके परिवार के नाम की कृषि भूमि, आवासीय भूखंड और मकान हैं। विधानसभा में हुई फर्जी नियुक्तियों को लेकर आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो ने एक पूर्व मुख्यमंत्री के साथ ही करीब 16 लोगों पर प्रकरण दर्ज किया था। इसमें शर्मा भी शामिल हैं। ईडी ने शर्मा के खिलाफ 1993-2009 की अवधि के दौरान आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज प्राथमिकी के आधार पर केस दर्ज किया था।

बोले लक्ष्मण सिंह: जनप्रतिनिधियों व अफसरों की पेंशन बंद हो
गुना की चांचौड़ा सीट से कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह अपनी मुखरता के लिए जाने जाते हैं। वे ऐसे नेता है जो सच होता है वही बोलते हैं, भले ही इससे किसी को भी बुरा लगे। इसकी वजह से वे अक्सर चर्चा में बने रहते हैं। अब उनके द्वारा सांसदों, विधायकों और अधिकारियों की पेंशन बंद करने की मांग की गई है। उन्होंने यह मांग ट्वीट कर की है। उन्होंने गत दिवस लगातार दो ट्वीट कर जाति का और पेंशन का सवाल उठाया है। पहले ट्वीट में सिंह ने लिखा- राष्ट्र निर्माण करने वाला शिक्षक, राष्ट्र की रक्षा करने वाला सैनिक अपनी पेंशन की लड़ाई लड़ रहा है, तो सांसद, विधायक और अधिकारी की पेंशन भी बंद होनी चाहिए। वैसे जनता भी यही चाहती है। इसकी वजह भी है। जनप्रतिनिधि दावा करते हैं कि वे राजनीति में सेवा के लिए आए हैं, लेकिन बेचारी जनता का भला करने के चक्कर में वे मेवा खाने लगते हैं और देखते ही देखते गरीब से अमीर हो जाते हैं। दूसरे ट्वीट में उन्होंने जाति की राजनीति के सवाल को उठाते हुए लिखा कि जातिवाद की राजनीति ने न तो देश का और न जाति का भला किया है, केवल नेताओं का भला किया है।

लग्जरी आरामगाह के हुए तलबगार
प्रदेश की सत्तारुढ़ पार्टी इन दिनों कई तरह के बदलाव के दौर से गुजर रही है। पार्टी में युवाओं को आगे लाने का मामला हो या फिर लग्जीरियस सुविधाओं की। दरअसल वैसे तो पार्टी में संघ के प्रचारक रह चुके नेताओं की भरमार है, लेकिन अब वे राजनैतिक दल में काम कर रहे हैं सो उनकी सोच भी बदल चुकी है। यही वजह है कि अब उन्हें पार्टी दफ्तर में मौजूद वीआईपी इंतजाम हो या फिर सामान्य होटल दोनों ही उन्हें रास नहीं आते हैं। यही वजह है कि उनके लिए अब पार्टी द्वारा एक पांच सितारा होटल में स्थाई व्यवस्था करनी पड़ी है। इस होटल के झरोखे से वे भले ही पार्टी कार्यकर्ताओं की वक्त बेवक्त की परेशानियों को भले ही न निहार पाएं, लेकिन भोपाल के सौंदर्य को निहारने की उनकी हसरत जरुर पूरी हो जाती है। यह बात अलग है कि यह नेता जी जब भी भोपाल आते हैं तो अपने कार्यकर्ताओं को साधा जीवन उच्च विचार की घुट्टी पिलाना नहीं भूलते हैं। यह बात अलग है कि पार्टी का जो कक्ष नेता जी को रास नहीं है उसमें पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मौजूदा गृह मंत्री तक रुक चुके हैं।

साहब की कोठी को कहीं नजर न लगे
वैसे तो साहब पुलिस में एक अदने से अफसर हैं, लेकिन कोठी के मामले में वे बड़े- बड़े अफसरों पर भी भारी पड़ते हैं। यह साहब नौकरी में तो आरक्षक के पद पर आए थे, लेकिन जुगाड़ू इतने हैं कि आउट आॅफ टर्न पाकर अब निरीक्षक के पद की राजधानी में शोभा बड़ा रहे हैं। उनकी अधिकांश नौकरी राजधानी में ही रही है, सो उनकी योग्यता भी समझी जा सकती है। साहब की नौकरी अभी इतनी बची हुई की एक प्रमोशन और मिल जाएगा। साहब बहादुरी वाले तमगे के बल पर जिस तरह से हवलदार से टीआई बने हैं उसी तरह से साहब ने राजधानी के एक खास इलाके में कोठी भी खड़ी कर ली है। अब यही कोठी मुख्यालय के बड़े-बड़े आईपीएस अफसरों के आंखो में खटकने लगी है। वैसे तो उस इलाके में कई और आलीशान कोठियां हैं, लेकिन जो खासियतें इस कोठी में है वह और कहीं नहीं है। यही वजह है कि अब साहब के पुराने दिल-जले यार और अफसर यह पता करने में लग गए हैं कि इतनी दिलदारी और समृद्धि आई कहां से…।

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