- भाजपा ने उपचुनाव के दौरान प्रोग्रेस वे को बनाया था चुनावी मुद्दा

भोपाल/राकेश व्यास/बिच्छू डॉट कॉम। चुनावी सफलता के बाद सरकार व उसके नुमाइंदे वादे व दावे करने के बाद भूल जाते हैं। यही वजह है कि धीरे -धीरे आमजन का उनसे विश्वास समाप्त होता जा रहा है। खास बात यह है कि सरकार ने इस अटल एक्सप्रेस वे का नए बजट में उल्लेख जरुर किया है, लेकिन इस पर काम कब शुरू होगा और कब तक बनकर तैयार होगा यह बताना भूल ही गई है। यही नहीं इसके लिए अलग से भी किसी भी तरह की राशि के प्रावधान का भी कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
यह वो अटल चंबल प्रोग्रेस वे है जिसके सहारे प्रदेश की भाजपा सरकार के छोटे से लेकर बड़े नेता तक ने विधानसभा उपचुनाव में ग्वालियर चंबल इलाके की सीटों पर जमकर गुणगान किया था। इसे इस इलाके में भाजपा ने सबसे बड़ा चुनावी हथियार बनाया दिया था। उपचुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद से राज्य सरकार से लेकर स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधि अब इसका नाम भी इलाके में नहीं लिया जा रहा है। यही नहीं यह अब इलाके में इसकी चर्चा तक नहीं की जाती है। गौरतलब है कि भारत माला परियोजना के तहत नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने राजस्थान के दीगोद से लेकर शिवपुर मुरैना और भिंड होते हुए उत्तर प्रदेश तक को जोड़ने के लिए 404 किलोमीटर लंबे अटल चंबल प्रोग्रेस वे को स्वीकृत किया है 6 हजार 58 करोड़ 26 लाख रुपए की लागत वाले चंबल प्रोग्रेस वे की लंबाई मध्यप्रदेश के श्योपुर मुरैना भिंड जिले में 309.08 किलोमीटर होगी।
इसके लिए लगभग 3350 से ज्यादा किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया जाना है। उपचुनाव के दौरान भाजपा ने प्रोग्रेस वे को चुनावी मुद्दा बनाते हुए इस अंचल के लोगों को काम जल्द शुरू होने का भरोसा दिलाते हुए उन्हें आवागमन, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास और 5000 से ज्यादा और लोगों को रोजगार मिलने के सपने दिखाए थे। खास बात यह है कि प्रदेश सरकार व प्रशासन की बेरुखी की वजह से अब तक इसके लिए जमीन के अधिग्रहण का काम अब तक शुरू नहीं किया गया है।
35 सौ किसानों की जमीन का होना है अधिग्रहण
खास बात यह है कि इस प्रोग्रेस-वे के लिए मप्र सरकार को जमीन का अधिग्रहण कर केन्द्र को सौंपना है। इसके निर्माण में 52 फीसद जमीन सरकारी और 48 फीसदी जमीन किसानों की आ रही है। इसके लिए किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। यह जमीन अधिग्रहण का काम मुरैना, श्योपुर और भिंड जिला प्रशासन को करना है। इसमें मुरैना जिले में 55 गांव के 1700 किसानों की 4200 बीघा और श्योपुर में 1447 किसानों से 3200 बीघा जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। इनमें से करीब 410 किसान जमीन अधिग्रहण की सहमति भी दे चुके हैं, लेकिन अब तक इस पर कोई कार्रवाई ही नहीं की गई है। यही नहीं चुनाव पूर्व अधिग्रहित जमीन के एवज में किसानों को दोगुनी जमीन देने के वादे को लेकर भी अब तक कोई आदेश तक जारी नहीं किए गए हैं।
तेजी से बढ़ रहा अतिक्रमण
प्रोग्रेस को सरकार ने जिस तेजी से प्रचारित किया था, उसके बाद अतिक्रमणकारियों ने भी उतनी ही तेजी से इस प्रोग्रेस वे रास्ते में अतिक्रमण करना शुरू कर दिया। प्रशासनिक लापरवाही की वजह से भिंड के जौरा क्षेत्र के तिंदोखर से लेकर देवगढ़, कोटरा और कोल्हूडांडा तक जिन बीहड़ों में मिट्टी के पहाड़ थे वहां, अब सैकड़ों बीघा समतल जमीन कर उस पर खेती की जाने लगी है। हालत यह है कि मुरैना में 2200 बीघा से ज्यादा तो श्योपुर में 700 बीघा से ज्यादा पर अतिक्रमण हो गया है।