-अभिषेक भार्गव और सिद्धार्थ मलैया के एक साथ मंच साझा करने से बदले समीकरण

भोपाल/हृदेश धारवार/बिच्छू डॉट कॉम। हाल ही में जिस तरह से बुंदेलखंड अंचल के दो दिग्गज भाजपा नेता गोपाल भार्गव और जंयत मलैया के पुत्रों की जुगलबंदी देखने को मिली है, उससे उपचुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले राहुल लोधी की मुश्किलें बढ़ना तय मानी जा रही है। दरअसल यह जुगलबंदी ऐसे समय दिखी है, जब दमोह विधानसभा का उपचुनाव जल्द ही होना है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कुछ समय पहले ही लोधी को पार्टी प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर चुके हैं।
दरअसल दमोह विधानसभा सीट जयंत मलैया की परंपरागत सीट है और वे यहां से कई बार जीत दर्ज कर चुके हैं। बीते विधानसभा चुनाव में मलैया को लोधी ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर बेहद मामूली अंतर से पराजित कर दिया था। पिता की इस हार को सिद्दार्थ मलैया अब तक भूल नहीं पा रहे हैं। यही नहीं वे पार्टी में सक्रिय रहकर बीते दो चुनावों से पार्टी में टिकट की दावेदारी भी कर रहे हैं। अब उन्हें पड़ोसी विधानसभा के अति प्रभावशाली नेता और शिव सरकार के वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक(दीपू) का भी साथ मिल चुका है। दीपू भी उन नेता पुत्रों में से हैं, जो बीते दो चुनावों से लोकसभा टिकट की दावेदारी करते आ रहे हैं। हाल ही में दमोह में आयोजित एक पार्टी से इतर कार्यक्रम में यह दोनों नेता एक ही मंच को साझा करते नजर आए, तो इसके मायने तलाशे जाने लगे हैं। इसकी वजह है दोनों की राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं। सिद्दार्थ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में जिस तरह से दीपू अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ लग्जरी वाहनों के काफिले के साथ दमोह पहुंचे तो उनका एक हीरो की तरह भीड़ ने स्वागत किया। इससे लोगों में फिल्मी दृश्य कौंध गया। दरअसल जिस तरह से बीते विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले कांग्रेस विधायक राहुल लोधी ने कांग्रेस बगावत कर भाजपा में आमद दी थी और इसके बाद उन्हें आनन-फानन में वेयरहाउस कार्पोरेशन में चैयरमैन बनाकर मंत्री पद का दर्जा दिया गया था। तभी से माना जा रहा था कि इस सीट पर उपुचनाव में, भाजपा द्वारा अपने पूर्व मंत्री जयंत मलैया पर दांव लगाया जा सकता है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से दमोह दौरे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा राहुल को प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा की गई है , उससे मलैया के अरमानों पर पानी फिर गया है। मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद से ही सिद्दार्थ द्वारा पूरे विधानसभा क्षेत्र में व्यक्तिगत रूप से कार्यक्रम आयोजित कर अपनी सक्रियता बेहद तेज कर दी गई है। फिलहाल उनके द्वारा इलाके में अभी आशीर्वाद यात्रा निकाली जा रही है। इस यात्रा का उद्देश्य क्या है यह तो वही बता सकते हैं , लेकिन इसे उपचुनाव से ही जोड़कर देखा जा रहा है। इसी यात्रा के कार्यक्रम में शामिल होने दो दिन पहले दीपू भी दमोह पहुंचे थे।
वे वहां पहुंचे और इस कार्यक्रम में भी शामिल हुए। दरअसल इस इलाके में दीपू और उनके पिता का भी अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। दीपू बीते दो चुनावों से इसी इलाके से लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। इसकी वजह से उनका इस इलाके के मतदाताओं से न केवल सतत संपर्क बना रहता है , बल्कि उनके परिवार का प्रभाव भी बहुत है। लगातार टिकट और संगठन में महत्वपूर्ण पद की दावेदारी करने के बाद भी उन्हें इस बार दूर ही रखा जा रहा है। दरअसल संगठन साफ कर चुका है कि वह कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर नेता पुत्रों को तरजीह नहीं देगा। माना जा रहा है कि इस कार्यक्रम में ताकत दिखाकर इन दोनों ही नेता पुत्रों ने संगठन को यह संदेश देने का काम किया है कि उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है।
..तो मतभेद हो चुके दूर
एक साथ मंच साझा करने की वजह से माना जा रहा है कि अब भार्गव व मलैया पुत्रों के बीच मनभेद दूर हो चुका है। दरअसल उनके बीच अंदरुनी मनभेद की स्थिति उस समय बन गई थी , जब 2014 में दीपू भार्गव का नाम लोकसभा प्रत्याशी के लिए तेजी से चला था , लेकिन इस बीच सिद्दार्थ की माता जी सुधा मलैया ने भी इसी सीट से दावेदारी पूरी दम से कर दी थी , लिहाजा दोनों को ही टिकट नहीं मिल सका था।
तलाशे जा रहे हैं मायने
मलैया के साथ भार्गव पुत्र के एक साथ इस तरह खड़े होने और पार्टी से इतर सिद्दार्थ की लगातार सक्रियता के अब राजनैतिक तौर पर मायने तलाशे जा रहे हैं। कुछ लोग इसे उपचुनाव में पार्टी के विद्रोह से जोड़कर भी देख रहे हैं। दरअसल इन दिनों प्रदेश भाजपा व सरकार में नेता पुत्रों को पूरी तरह से किनारे करने का काम किया जा रहा है। इनमें वे नेता पुत्र भी शमिल हैं जो पूर्व में विधायक से लेकर मंत्री तक रह चुके हैं। इस वजह से नेता पुत्रों में अंदर ही अंदर असंतोष खदबदाने की भी बात कही जा रही है।